श्री विधि से बोवाई में लागत कम,पैदावार ज्यादा
संवादसूत्र, बकेवर : धान की कटाई के बाद किसान उसी खेत में गेहूं की बोवाई करते हैं, अगर
संवादसूत्र, बकेवर : धान की कटाई के बाद किसान उसी खेत में गेहूं की बोवाई करते हैं, अगर इस समय सामान्य के बजाय श्री विधि से गेहूं की बोवाई करते हैं तो लागत कम और पैदावार ढाई से तीन गुना ज्यादा हो सकती है। श्री विधि से खेती की तैयारी भी सामान्य गेहूं की तरीके से ही करते हैं। खेत से खरपतवार और फसल अवशेष निकालकर खेत की तीन-चार बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना सकते हैं। उसके बाद पाटा चलाकर खेत को बराबर कर जलनिकासी का उचित प्रबंन्ध करें। यदि दीमक की समस्या है तो दीमक नाशक दवा का प्रयोग करना चाहिए। खेत में पर्याप्त नमी न होने पर बुवाई के पहले एक बार पलेवा करना चाहिए। किसानों को चाहिए खेत में छोटी-छोटी क्यारियां बना लें। इस तरह से ¨सचाई समेत दूसरे काम आसानी से और कम लागत में हो सकेंगे। बीजोपचार से बढ़ती पौधों के बढ़ने की शक्ति
जनता कालेज बकेवर के कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमपी ¨सह बताते हैं कि बोवाई के लिए प्रति एकड़ 10 किलोग्राम बीज का उपयोग करना चाहिए। सबसे पहले 20 लीटर पानी एक बर्तन में गर्म करें। अब चयनित बीजों को इस गर्म पानी में डाल दें। तैरने वाले हल्के बीजों को निकाल दें। अब इस पानी में तीन किलो केंचुआ खाद, दो किलो गुड़ और चार लीटर देशी गौमूत्र मिलाकर बीज के साथ अच्छी प्रकार से मिलाएं। अब इस मिश्रण को छह-आठ घंटे के लिए छोड़ दें। बाद में इस मिश्रण को जूट के बोरे में भरें, जिससे मिश्रण से अतिरिक्त पानी निकल जाए। इस पानी को एकत्रित कर खेत में छिड़कना लाभप्रद रहता है। अब बीज और ठोस पदार्थ बावास्टीन 2-3 ग्राम प्रति किग्रा. या ट्राइकोडर्मा 7.5 ग्राम प्रति किग्रा. के साथ पीएसबी कल्चर 6 ग्राम और एजोबैक्टर कल्चर 6 ग्राम प्रति किग्रा बीज के हिसाब से उपचारित कर नम जूट बैग के ऊपर छाया में फैला देना चाहिए। लगभग 10-12 घंटों में बीज बुवाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस समय तक बीज अंकुरित अवस्था में आ जाते हैं। इसी अंकुरित बीज को बोने के लिए इस्तेमाल करना है। इस प्रकार से बीजोपचार करने से बीज अंकुरण क्षमता और पौधों के बढ़ने की शक्ति बढ़ती है और पौधे तेजी से विकसित होते हैं, इसे प्राइ¨मग भी कहते हैं। बीज उपचार के कारण जड़ में लगने वाले रोग की रोकथाम हो जाती है। नवजात पौधे के लिए गौमूत्र प्राकृतिक खाद का काम करता है। बोवाई की विधि
बोवाई के समय मृदा में पर्याप्त नमी होना आवश्यक है, क्योंकि बोवाई के लिए अंकुरित बीज का प्रयोग किया जाना है। सूखे खेत में पलेवा देकर ही बुवाई करना चाहिए। बीजों को कतार में 20 सेमी की दूरी में लगाया जाता है। इसके लिए देशी हल या पतली कुदाली की सहायता से 20 सेमी. की दूरी पर तीन से चार सेमी. गहरी नाली बनाते हैं और इसमें 20 सेमी. की दूरी पर एक स्थान पर 2 बीज डालते हैं। बोवाई के बाद बीज को हल्की मिट्टी से ढक देते हैं। बोवाई के दो-तीन दिन में पौधे निकल आते हैं। कतार और बीज के मध्य वर्गाकार (20-3-20 सेमी.) की दूरी रखने से प्रत्येक पौधे के लिए पर्याप्त जगह मिलती है, जिससे उनमें आपस में पोषण, नमी व प्रकाश के लिए प्रतियोगिता नहीं होती है।