टीकाकरण कराएं, पशुओं को मौत से बचाएं
जनपद में हर वर्ष सैकड़ों पशु अकाल काल के गाल में समा जाते हैं। एक वजह पशुओं के टीकाकरण में खानापूर्ति और दूसरी वजह पशु पालकों में जानकारियों का अभाव होना है। पशुओं में फैलने वाली खुरपका-मुंहपका की बीमारी पशु पालकों के लिए अभिशाप बनी हुई है।
जागरण संवाददाता, इटावा : जनपद में हर वर्ष सैकड़ों पशु अकाल काल के गाल में समा जाते हैं। एक वजह पशुओं के टीकाकरण में खानापूर्ति और दूसरी वजह पशु पालकों में जानकारियों का अभाव होना है। पशुओं में फैलने वाली खुरपका-मुंहपका की बीमारी पशु पालकों के लिए अभिशाप बनी हुई है। रोग के लक्षण : खुरपका व मुंहपका की बीमारी की चपेट में आए पशु को तेज बुखार हो जाता है। बीमार पशु के मुंह, मसूड़े जीभ के ऊपर-नीचे होठ के अंदर का भाग खुरों के बीच की जगह पर छोटे- छोटे दाने से उभर आते हैं। फिर धीरे-धीरे ये दाने आपस में मिलकर कड़ा छाला बनाते हैं। समय पाकर यह छाले फट जाते हैं और उसमें जख्म हो जाता है। ऐसी हालत में पशु जुगाली करना बंद कर देता है। मुंह से लार गिरती है। पशु सुस्त पड़ जाता है। कुछ नहीं खाता है, खुर में जख्म होने के कारण पशु लंगड़ाकर चलता है। दुधारू पशु में दूध का उत्पादन गिर जाता है। पशुओं के लिए यह रोग मौत का कारण बन जाता है। ऐसे होगी बीमारी की रोकथाम : बीमार पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखें, पशु को बांध कर रखें, इधर-उधर न घूमने दें, पशु को सूखे स्थान पर बांधें, उसके खाने-पीने का प्रबंध भी अलग से करें, बीमार पशु को बेचना गांव व पड़ोस के गांव के पशुओं के लिए खतरा होता है। जहां-जहां पशु की लार गिरे उस स्थान पर कपड़े धोने का सोडा, चूना आदि डाल देना चाहिए। पशु की मौत होने पर जमीन में गहरा गड्ढ़ा खोदकर व चूना डाल कर गाढ़ दें अथवा उसे पूरी तरह से जला दें। पशु को पहला टीका 3 से 6 माह की उम्र में लगवा देना चाहिए। दूसरा टीका 6 माह के अंतराल पर लगवाना चाहिए।
गत वर्ष मरे 60 से अधिक पशु : खुरपका व मुंहपका बीमारी की चपेट में आने से महेवा क्षेत्र में 20, चकरनगर तहसील क्षेत्र में 30 तथा भरथना क्षेत्र में 10 से अधिक पशुओं की मौत जानकारी के अभाव में हो जाना बताया गया है। क्या कहते हैं अधिकारी: शासन के निर्देश पर हर वर्ष पशुओं को बीमारी से बचाने के लिए टीकाकरण अभियान चलाया जाता है। यह बीमारी बहुत ही छोटे आंख से न दिखने वाले कीड़े से फैलता है। जिसे विषाणु या वायरस कहते हैं। जिले में 1,27,460 गोवंश व 2,92,683 भैंसे पाली जा रही हैं। डा. डीके शर्मा, मुख्य पशु चिकित्साधिकारी
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