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कपड़ा व्यापारियों का दर्द, आयकर की सीमा बढ़ाई जाए

वित्त मंत्री जी सुनिए.. जागरण संवाददाता इटावा एक जमाना था जब कपड़े का कारोबार सम्मान जनक

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 Jan 2021 06:56 PM (IST)Updated: Sat, 09 Jan 2021 06:56 PM (IST)
कपड़ा व्यापारियों का दर्द, आयकर की सीमा बढ़ाई जाए
कपड़ा व्यापारियों का दर्द, आयकर की सीमा बढ़ाई जाए

वित्त मंत्री जी सुनिए..

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जागरण संवाददाता, इटावा: एक जमाना था जब कपड़े का कारोबार सम्मान जनक माना जाता था लेकिन अब सरकारी कानून व कायदों ने कारोबार को मंदी की कगार पर पहुंचा दिया है। व्यापारियों को कहना है कि बड़े कारोबारियों पर जो टीसीएस यानी टैक्स कलेक्शन एट सोर्स जमा कराया जाता है लेकिन काफी समय बाद उसे वापस किया जाता है इससे कारोबार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा धन का अभाव झेलना पड़ता है। इस लिए इस बजट में टीसीएस को खत्म कर देना चाहिए, इससे कपड़े का कारोबार पटरी पर आ सकता है। शहर के कपड़ा कारोबारियों ने कुछ इस तरह के विचार व्यक्त किए।

शहर के नगर पालिका परिषद चौराहे के पास डीसीएम का शोरूम चलाने वाले कपड़े के कारोबारी का कहना है कि सरकार को इस बजट में ऐसा प्रावधान करना चाहिए कि जिले में एक बड़ा कारखाना खोलना चाहिए, जिससे कारोबार को पंख लग सकें। सरकार ने आयकर में छूट की जो सीमा निर्धारित की है उसे बढ़ाना चाहिए। कपड़े का कारोबार इस साल घाटे का सौदा साबित हो रहा है।

रविकांत अग्रवाल कपड़े के भाव में ग्रेड बढ़ने से महंगाई का तड़का लगा है। कपड़े की दरें कम होनी चाहिए। अभी तक जो कपड़ा बाहर से आता है अनेक तरह के कर लगने से वह महंगा हो जाता है। आज के दौर में पूंजी की बहुत ही दिक्कत रहती है। सरकार को चाहिए की वह व्यापारियों से आयकर के साथ एलआईसी का प्रीमियम भी लेना चाहिए।

गुरुभेज सिंह भेजा कपड़े का कारोबार अब दिनोंदिन खत्म होता जा रहा है। सरकार को टीसीएस की व्यवस्था वापस लेनी चाहिए। उनका कहना है कि टीसीएस का पैसा तो वापस मिल जाता है लेकिन जितने दिन तक जमा रहता है, कारोबारी को आर्थिक संकट झेलना पड़ता है, इसलिए इसे खत्म कर देना चाहिए।

बलविदर सिंह राजागंज में कपड़े का कारोबार करने वाले व्यापारी का कहना है। कर में राहत मिलने से कारोबार बढ़ सकता है। जीएसटी की दो दरें लागू की गई हैं पांच फीसद व 12 फीसद। इसमें से पांच फीसद ही लागू किया जाए क्योंकि एक हजार से अधिक बिक्री होने पर 12 फीसद जीएसटी लग जाती है। इसे पांच फीसद ही किया जाए।

प्रबल कुमार


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