सीमा ने दिलाई थी निर्भया केस के दरिदों को फांसी
मनोज तिवारी बकेवर विश्व महिला समानता दिवस 26 अगस्त को मनाया जाता है। दुनियां भर की महिलाओ
मनोज तिवारी, बकेवर :
विश्व महिला समानता दिवस 26 अगस्त को मनाया जाता है। दुनियां भर की महिलाओं के लिए यह बेहद ही खास दिन है। महिलाएं अब पुरुषों के बराबर खड़ी होकर बुलंदी के झंडे गाढ़ रहीं हैं। जनपद के लखना कस्बे के गांव उग्गरपुरा निवासी सीमा कुशवाह का नाम भी जुवां पर लिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट में प्रेक्टिस कर रहीं सीमा कुशवाह ने निर्भया के दरिदों को फांसी दिलाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी और जीत हासिल हुई 20 मार्च 2020 को चारों दोषियों को फांसी पर लटका दिया गया। सीमा ने अपने इस कार्य से जनपद का सीना गर्व से चौड़ा कर दिया। परिवार ने झेली काफी तकलीफ सीमा समृद्धि कुशवाहा ने पुरुषों से प्रतिस्पर्धा कर मुकाम हासिल किया है। उसके लिए उन्होंने लंबी जद्दोजहद की है। बेहद गरीब परिवार की सीमा कुशवाहा ने अभावों के बीच पढ़ाई की। उनमें शुरू से ही ललक थी इसलिए सीमा ने कभी हारना नहीं सीखा। मां कहती हैं कि पढ़ाई के लिए तो वह कितने भी दुख-दर्द उठा लेती थी। शुरू की शिक्षा गांव और आसपास ही हुई। इसके बाद वह लखना कस्बे के कलावती रामप्यारी स्कूल में पढ़ने गईं और वहां से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। अजीतमल पीजी कॉलेज गईं। सात-भाई बहनों में सीमा सबसे छोटी हैं। संविदा पर करनी पड़ी थी नौकरी अजीतमल पीजी कॉलेज के बाद सीमा कुशवाहा कानपुर गईं और वहां के डीएवी कॉलेज से लॉ किया। लॉ करने के बाद वह कुछ समय हाईकोर्ट इलाहाबाद गईं। आर्थिक तंगी के चलते प्रौढ़ शिक्षा विभाग में अनौपचारिक शिक्षक के रूप में संविदा पर नौकरी भी की। फिर साहस किया और 2012 में सुप्रीम कोर्ट चली गईं। सीमा ने वहीं मास कम्युनिकेशन की भी पढ़ाई की। सुप्रीम कोर्ट में सीमा कुशवाहा ने दिखाया दम सीमा कुशवाहा ने निर्भया केस के दरिदों को सजा दिलाने के लिए एड़ी-चोटी की ताकत लगा दी। कानून के क्षेत्र में तमाम तिकड़मबाजी और तर्क-वितर्क से भरा यह केस लंबे समय तक चला। आखिरकार निर्भया के दरिदों को 20 मार्च को फांसी मिली और सीमा कुशवाहा की जीत हुई। एक प्रख्यात वकील के रूप में आज सीमा की समृद्धि दुनियाभर में बढ़ गई है।