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हाय रे कोरोना, पत्नी ने भी बढ़ाई दूरियां

कोविड-19 महामारी पति-पत्नी के अटूट रिश्ते में भी बाधक साबित हो रही है। इसकी बानगी अहमदाबाद गुजरात से गांव लौटे प्रवासी की व्यथा सुनने पर प्रकट हुई। कोरोना वायरस के भय से पत्नी ने भी पति से दूरियां बढ़ा ली हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 27 May 2020 06:20 PM (IST)Updated: Wed, 27 May 2020 06:20 PM (IST)
हाय रे कोरोना, पत्नी ने भी बढ़ाई दूरियां
हाय रे कोरोना, पत्नी ने भी बढ़ाई दूरियां

संवादसूत्र, बकेवर : कोविड-19 महामारी पति-पत्नी के अटूट रिश्ते में भी बाधक साबित हो रही है। इसकी बानगी अहमदाबाद गुजरात से गांव लौटे प्रवासी की व्यथा सुनने पर प्रकट हुई। कोरोना वायरस के भय से पत्नी ने भी पति से दूरियां बढ़ा ली हैं। बकेवर नगर के समीप गांव कुड़रिया के जिलेदार पुत्र तुलसी राम बताते हैं कि अहमदाबाद में नौकरी करता था, वहां काम ठप होने पर 20 दिन पूर्व गांव लौटा तो अपनों के बीच पहुंचने की लालसा को लेकर मन ही मन खुश था। कई प्रकार की मुसीबतों का सामना करते हुए गांव पहुंचा तो मन में समाई सारी खुशियों पर तुषारापात सा हो गया। पहले 14 दिन तक गांव के सामुदायिक केंद्र में क्वारंटाइन में रखा गया। वहां भी ऐसा बर्ताव हुआ कि जैसा पूर्व में अछूतों के साथ किया जाता था, गैर तो गैर सबसे ज्यादा चाहने वाली उनकी पत्नी भी दूर से ही खाना देकर चंद मिनटों की बातचीत करके चली जाती थी। 14 दिन की क्वारंटाइन रूपी अग्निपरीक्षा देकर घर पहुंचा तो वहां घर के बाहर बरामदा में चारपाई तक सीमित कर दिया गया। पत्नी दूर से ही सिर्फ खाना रखकर चली जाती है, अन्य स्वजन भी ऐसा ही समझ रहे हैं कि जैसे कोरोना वायरस साथ लेकर आया हूं। कोई भी पास आकर दुख-दर्द की बात नहीं कर रहा है। पुत्रों को गले लगाने की हसरत अधूरी इसी गांव के सेवानिवृत्त फौजी राजेंद्र के पुत्र सर्वेश व तहसीलदार परदेश से लौटकर अपने घर आ चुके हैं उनके पुत्र क्वारंटाइन रूपी अग्निपरीक्षा दे चुके हैं। दोनों पुत्र घर पहुंचे तो अनुशासन का डंडा चल गया, पिता ने पुत्रों को मकान के ऊपर बने कमरे मे ही लेटने-बैठने के फरमान सुना दिया। सभी स्वजन को कड़ा निर्देश दिया गया कि दूर से ही खान-पान की वस्तुएं दी जाएं। अनुशासन पसंद पूर्व फौजी पिता का कहना है कि लॉकडाउन में पुत्रों के आने की अपार खुशी हुई, दोनों पुत्रों को गले लगाने की हसरत थी मगर कोरोना वायरस की आशंका से यह हसरत पूरी नही कर सका। गांव कुड़रिया के यह दो मामले तो बानगी भर हैं, गांवों में लौटे अधिकतर प्रवासियों की यही हालत है, महामारी के भय से उन्हें अपने भी नहीं अपना रहे हैं। इससे प्रवासियों के मन में निराशा के भाव उत्पन्न हो रहे हैं।

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