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कैशलेस ट्रांजेक्शन पर जोर, साइबर सुरक्षा के मोर्चे पर कमजोर

सोहम प्रकाश इटावा बैंक फ्राड के बढ़ते केसों के बीच वर्ष 2016 से कैशलेस ट्रांजेक्शन प

By JagranEdited By: Published: Sat, 04 Sep 2021 07:21 PM (IST)Updated: Sat, 04 Sep 2021 07:21 PM (IST)
कैशलेस ट्रांजेक्शन पर जोर, साइबर सुरक्षा के मोर्चे पर कमजोर
कैशलेस ट्रांजेक्शन पर जोर, साइबर सुरक्षा के मोर्चे पर कमजोर

सोहम प्रकाश, इटावा

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बैंक फ्राड के बढ़ते केसों के बीच वर्ष 2016 से कैशलेस ट्रांजेक्शन पर तो काफी जोर है और इसके प्रति तेजी से अमल भी बढ़ा है, लेकिन साइबर सुरक्षा का कोई पुख्ता इंतजाम न होने से जोखिम भी ज्यादा है। मुश्किल यह है कि सेंधमारी के लिए जिस अबूझ अत्याधुनिक तकनीक का अब इस्तेमाल किया जाने लगा है, उस पर नियंत्रण के लिए बहुत कम काम हुआ है। ऐसे में जागरुकता ही बचाव का रामबाण है। मार्केटप्लेस ट्रांजेक्शन, डिजिटल वालेट, आनलाइन खरीदारी आदि में किस प्रकार सतर्कता और सावधानी की जरूरत है, इस पर अभी काफी जागरुकता लाए जाने की जरूरत है। हालांकि पुलिस विभाग की साइबर सेल इस दिशा में सक्रिय है। साइबर अपराधी कैसे करते हैं ठगी ई-शापिग या बिल पेमेंट के दौरान ठग आपके कार्ड संबंधी जानकारी चुरा सकते हैं। आनलाइन शापिग के लिए यूज किए गए आपके बैंक अकाउंट, क्रेडिट कार्ड नंबर, सीवीवी नंबर आदि को धोखेबाज चुरा सकते हैं। साथ ही आपके कंप्यूटर में वायरस भी डाल सकते हैं, जो आपके ई-मेल में मौजूद सारी जानकारी हासिल कर सकता है। अगर आपने अपने कंप्यूटर या लैपटाप पर पासवर्ड या लाग-इन-आईडी सेव किए हैं, तो डेटा चोरी होने की आशंका ज्यादा है। ऐसे कई मोबाइल फोन ऐप्स हैं, जो आपके फोन पर मौजूद डेटा तक पहुंच मांगते हैं। ऐप डाउनलोड करते वक्त ध्यान रखें कि वह सेफ हो। फोन की सेटिग्स में जाकर आप यह तय कर सकते हैं कि कोई ऐप आपसे कौन सी जानकारी ले सकता है। अंजान से ऐप चाहे वे कितने ही आकर्षक क्यों न हों, डाउनलोड न करें। अगर आप पब्लिक एरिया में लैपटाप यूज करते हैं या पब्लिक वाई-फाई के जरिये मोबाइल ट्रांजेक्शन करते हैं, तो इसके जरिये ठग आपके लाग-इन-आईडी को हैक कर आपके क्रेडिट कार्ड की डिटेल्स, आपके अकाउंट से चोरी कर सकता है। अनसेफ सर्फिंग से बचें। मुफ्त डेटा के लालच में न पड़ें। ऐसे करें बचाव -एसएमएस व ई-मेल अलर्ट के रजिस्टर करके हर ट्रांजेक्शन की जानकारी मिल सकेगी। आपकी जानकारी के बगैर कोई ट्रांजेक्शन करता है, तो आपको पता चल जाएगा। ऐसा होने पर बैंक के कस्टमर केयर नंबर पर काल करें। किसी भी वेबसाइट, सर्वर, मोबाइल, डेस्कटाप पर क्रेडिट कार्डस की डिटेल्स सेव न करें।

-अपना नेटबैंकिग पासवर्ड, एटीएम या फोन पिन किसी के साथ शेयर न करें, फिर चाहे सामने वाला कोई भी वजह क्यों न बताए। बैंक या क्रेडिट कार्ड से जुड़े किसी भी अधिकारी को आपके कार्ड की डिटेल्स जानने का हक नहीं है। इसलिए वे कभी इसके लिए आपको काल नहीं करेंगे।

-किसी साइट पर सीवीवी डालते समय ध्यान रखें कि स्क्रीन पर नंबर नजर न आएं, सिर्फ स्टार ही दिखें। खासकर विदेशी साइट्स पर पेमेंट करते हुए इस बात का ध्यान रखें क्योंकि वहां वेरिफिकेशन और अप्रूवल के लिए सीवीवी ही अकेला जरिया होता है। एटीएम यूज करते हुए कीपैड को हाथ से ढककर रखें।

-ओटीपी का इस्तेमाल कर ई-पेमेंट करें। नए आनलाइन रिटेलर्स के साथ कार्ड-आन-डिलीवरी पर पेमेंट के लिए डिजिटल वालेट का इस्तेमाल करना सुरक्षित है। पासवर्ड के लिए जन्मतिथि और नाम जैसी व्यक्तिगत जानकारी का इस्तेमाल करने से बचें। बगैर हमारी गलती के कोई नहीं ठग सकता साइबर एक्टिविस्ट अतुल मिश्रा का प्रतिष्ठान मार्डन कंप्यूटर व‌र्ल्ड नाम से व्यावसायिक काम्लेक्स पक्का तालाब चौराहा पर है। वह बताते हैं कि बगैर हमारी किसी गलती के कोई हमें ठग नहीं सकता। वह करीब 12 वर्ष से पहले नेटबैंकिग से और उसके बाद मोबाइल वालेट का प्रचलन बढ़ने से इसी के माध्यम से लेन-देन कर रहे हैं। अब तक एक भी बार धोखाधड़ी के शिकार नहीं हुए। कहते हैं, सभी मोबाइल वालेट में पैसे सुरक्षित हैं, बशर्ते हमारी तरफ से कोई गलती नहीं होनी चाहिए। मान लीजिए कोई आनलाइन एक्सचेंज मार्केटप्लेस कंपनी है और उस पर कोई अपना लैपटाप बेचना चाहता है और उसको खरीदने के लिए आप आनलाइन संपर्क करते हैं तो बात उस लैपटाप के इमेज या वीडियो के तौर पर आगे बढ़ती है। बात जब लेन-देन की आती है, तो बिक्रेता अपना अकाउंट नंबर के बजाय यदि लिक भेजता है तो कम कीमत के लालच में जल्दबाजी न करें, चीटिग हो सकती है। संतुष्टि के बाद ही विभिन्न विकल्पों से खरीद-फरोख्त करें और लिक पर क्लिक करने से बचें। क्योंकि लिक से आपकी डिटेल्स शेयर हो सकती है। डिजिटल वालेट यूजर को अपनी सेफ्टी के लिए अपना मोबाइल फोन के साथ ही ऐप लाक का इस्तेमाल कर इन वालेट ऐप्स को भी लाक करके रखना चाहिए। डिजिटल वालेट्स साइबर अपराधियों के लिए आसान टारगेट होते हैं। वालेट ट्रांजेक्शन अक्सर कम एमाउंट की होती हैं और इस वजह से बहुत से वालेट्स एडवांस्ड सिक्योरिटी सिस्टम का प्रयोग नहीं करते हैं और ऐसे में साइबर अटैक का खतरा बढ़ जाता है। डिजिटल वालेट और नेटबैंकिग के लिए समान पासवर्ड का प्रयोग न करें। ट्रांजेक्शन पूरी होने के बाद डिजिटल वालेट से लाग आउट करें।


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