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पक्की छत मिलने से बदली जिंदगी

केस - एक बसरेहर के हरीओम शाक्य का कहना है पहले झोपड़ी में परिवार हर मौसम में मुस

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Mar 2019 05:12 PM (IST)Updated: Fri, 22 Mar 2019 05:12 PM (IST)
पक्की छत मिलने से बदली जिंदगी
पक्की छत मिलने से बदली जिंदगी

केस - एक

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बसरेहर के हरीओम शाक्य का कहना है पहले झोपड़ी में परिवार हर मौसम में मुसीबतों का सामना करता था। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास और इज्जतघर मिलने जिंदगी में काफी बदलाव आया है। अब बरसात के दिनों में टपकती छत की परेशानी से निजात मिल गई है। केस - दो

बसरेहर के अनिल कुमार और उसकी पत्नी अलका देवी का कहना है कि आवास और इज्जतघर मिलने से बड़ा सहारा मिल गया। सर्दी के दिनों में टिनशेड में बच्चे ठिठुरते थे। कई बार तो इतना बीमार पड़ जाते कि अस्पताल ले जाना पड़ता। वहीं बारिश में गृहस्थी बर्बाद हो जाती थी। -----

जागरण संवाददाता, इटावा : चार साल पहले तक ग्रामीण क्षेत्रों में जहां लोग धनाभाव के कारण झोपड़ी में रहने को मजबूर थे। बारिश में जहां गृहस्थी बचाने की जद्दोजहद करते थे तो सर्दियों में ठिठुरते हुए जागकर रातें काटते थे। प्रधानमंत्री आवास योजना के आने के बाद पिछले तीन सालों में 10,131 परिवारों को अपना पक्का आशियाना मिला है। इन आशियानों में मौसम संबंधी परेशानी से जहां निजात मिलीं तो स्वच्छ भारत मिशन के तहत मिले इज्जतघर से महिलाओं की रोज की शर्मिदगी मिट गई है।

प्रदेश में योगी सरकार बनने के बाद प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट आवास योजना और स्वच्छ भारत मिशन के कार्यो में काफी तेजी आई है। लगातार मॉनिटरिग के कारण दोनों ही योजनाओं के काम तय समय पर पूरे हुए हैं। पिछले तीन सालों में 10131 गरीब वर्ग के परिवार को झुग्गी झोपड़ी से मुक्ति मिली जबकि स्वच्छ भारत मिशन के तहत तकरीबन डेढ़ लाख इज्जतघर गरीबों को दिए गए।

त न किश्तों में आता है आवास का धन

आवास योजना में लाभार्थी को 1.20 लाख रुपये तीन किश्तों में मिलते हैं। पहली किस्त के रूप में 10 हजार रुपये दीवार निर्माण के लिए, दूसरी किस्त में 70 हजार रुपये छत पूर्ण कराने के लिए जबकि तीसरी किस्त में 10 हजार रुपये प्लास्टर, रंगाई व पुताई के लिए मिलते हैं। धनराशि लाभार्थियों के खाते में दी जाती है।

प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जनपद में बीते तीनों सालों में 10131 आवासों का निर्माण कराकर लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है।

- उमाकांत त्रिपाठी, परियोजना निदेशक, डीआरडीए


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