प्राकृतिक रंगों से मनाएं होली
जागरण संवाददाता इटावा राग रंग का त्योहार होली कई संस्कृतियों परंपराओं और रीतियों
जागरण संवाददाता, इटावा : राग रंग का त्योहार होली कई संस्कृतियों, परंपराओं और रीतियों का संगम है। फागुन के महीने में बसंती बयार के बीच होली का पर्व मनाने को हर कोई आतुर है। लेकिन रंगों का यह उत्सव कहीं केमिकलयुक्त रंगों के प्रयोग से फीका न पड़ जाए। इसलिए रंगों के चुनाव में अतिरिक्त सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। बदलें तौर-तरीके सिटी मजिस्ट्रेट सतेन्द्र नाथ शुक्ला ने कहा कि अक्सर देखने में आता है कि होली के नाम पर लोग जोर-जबरदस्ती पर उतारू हो जाते हैं। ऐसे में बीमारों के साथ-साथ शारीरिक रूप से असक्षम को भी नहीं बख्शा जाता है। कई बार होली के नाम पर निरीह जानवरों को भी परेशान किया जाता है। इसके अलावा बसों व दुपहिया वाहनों पर सवार लोगों पर अचानक फेंके जाने वाले पानी के गुब्बारों से दुर्घटना की संभावना बनी रहती है। बुरा न मानो होली है, कहकर हर नाजायज हरकत को जायज बनाने का प्रयास गलत है। ऐसी परिस्थितियों से स्वयं आपको को भी जूझना पड़ सकता है। इसलिए त्योहार पर मानवता और नैतिकता का भी ख्याल रखना चाहिए। ऐसे तैयार करें रंग प्राकृतिक रंगों के विक्रेता गोविद मिश्रा बताते हैं कि टेसू व गुलाब के फूलों के रस और हल्दी, गेंदा, अनार और मेंहदी आदि से प्राकृतिक रंगों का निर्माण किया जाता है। इनका प्रयोग त्वचा के लिए काफी मुफीद होता है।