अब नीम की निबौलियां सुधार रहीं आर्थिक स्थिति, आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं
पर्यावरण व स्वास्थ्य की दृष्टि से इसका खासा महत्व है। नीम की पत्तियों से लेकर छाल, बीज व बीजों से निकलने वाला तेल औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है।
नीलोत्पल दुबे, इटवा (सिद्धार्थनगर)। सुखमय मानव जीवन की कल्पना प्रकृति के साथ चलने में ही है। जिसने भी इसे आत्मसात किया उसका जीवन हमारे लिए अनुकरणीय रहा। इसमें वह शक्ति है कि निरोगी काया के साथ-साथ हम धन-धान्य से भी परिपूर्ण होते हैं। ‘मन की बात’ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसे स्वीकार किया है। इसी प्रकृति की एक देन है नीम का वृक्ष।
पर्यावरण व स्वास्थ्य की दृष्टि से इसका खासा महत्व है। नीम की पत्तियों से लेकर छाल, बीज व बीजों से निकलने वाला तेल औषधीय गुणों से भरपूर माना जाता है। इन्हीं, खूबियों के कारण ग्रामीण परिवेश में आज भी दरवाजे पर नीम का पौधा रोपने की परंपरा जीवित है। इन्हीं औषधीय गुणों के कारण बहुराष्ट्रीय कंपनी व खाद की फैक्ट्रियों में भी नीम के तेल की मांग है। केंद्र सरकार ने नीम कोटेड यूरिया का निर्माण शुरू कराया है। उसके बाद से नीम की महत्ता और बढ़ गई।
यही नीम के पेड़ इस समय सिद्धार्थनगर जिले के ग्राम सोननगर में लोगों पर सोना बरसा रहे हैं। दो वर्ष पहले गांववासी रामनरेश यादव की अगुवाई में गांव की महिलाओं ने नीम के वृक्षों का संरक्षण करना शुरू किया। अब नीम की निबौलियों से निकलने वाले तेल की बिक्री से आत्मनिर्भर होने के साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहीं हैं।
यहां नीम के वृक्षों के संवर्धन की मुहिम एक छोटे से गांव सोननगर से शुरू हुई है। दो वर्ष पहले शुरू हुआ यह प्रयास आज अपनी पैठ मजबूत कर चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो वर्ष पहले आकाशवाणी के माध्यम से लोगों को मन की बात बताई थी। यही वह वक्त था कि ग्राम खानकोट निवासी रामनरेश यादव के जेहन में यह बात घर कर गई। सोचा कि क्षेत्र में तो नीम के सैकड़ों वृक्ष हैं, क्यों न इन इनको संवर्धित करते हुए ग्रामीण परिवेश की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाए। खानकोट, सेमरी व सोननगर में कुल मिला कर करीब चार सौ नीम के वृक्ष हैं।
वर्ष 2016 में रामनरेश यादव ने सोननगर की दो महिला दमयंती व किसलावती को इस मुहिम में शामिल किया। उन्हें नीम की निबौलियों (नीम की फली) एकत्र करने व सुखाने का दायित्व सौंपा। जुलाई व अगस्त में नीम के वृक्ष से निबौलियां पककर गिरती हैं। इस काम के उन्हें अतिरिक्त समय भी नहीं देना पड़ता था। शाम को दोनों गांव में जहां भी नीम के वृक्ष लगे थे, वहां जाकर निबौलियां इकट्ठा करतीं। घर लाकर साफ करने के बाद सुखाती थीं। प्रथम वर्ष में ही प्रयास रंग लाया। 3.50 क्विंटल निबौलियां एकत्र हुईं। उसका तेल निकाला गया। तेल की मात्रा 90 लीटर आई। अब उनके सामने समस्या आई कि तेल की बिक्री कहां की जाए। रामनरेश यादव ने पंतजलि कंपनी से संपर्क किया। कंपनी ने स्थानीय स्टाकिस्ट के माध्यम से तेल खरीद लिया। नीम तेल की बिक्री पांच सौ रुपये प्रति लीटर की दर से हुई थी। पहले वर्ष 45 हजार रुपये की आमदनी हुई। यह देख कर उनका हौसला बढ़ा। अब उन्होंने दायरा बढ़ा कर सोननगर से सेमरी तक पहुंचा दिया। दो और महिलाएं इस मुहिम में शामिल हो गई। वर्ष 2017 में कुल डेढ़ लाख रुपये की आमदनी हुई।
आत्मनिर्भर बन रही महिलाएं
इस काम में लगी महिलाओं का हौसला अब बुलंद है। रामनरेश यादव महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के मुहिम को रंग देने में लगे हैं। नीम वृक्षों का भी संरक्षण का जिम्मा इन्होंने ने उठा लिया है। रामनरेश कहते हैं कि इस वर्ष खादी ग्रामोद्योग से संपर्क किया जा रहा है। स्थानीय स्तर पर ही ग्रामोद्योग की एक यूनिट शुरू करने की योजना है। नीम का तेल पैकिंग कर बिक्री करने की योजना को अमलीजामा पहनाने की प्रक्रिया की जा रही है। ग्रामीण क्षेत्र की अशिक्षित महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया जाएगा।
राखी बांध करती हैं सलामती की कामना
दमयंती व किसलावती के प्रयास व सफलता को देख क्षेत्र की महिलाएं इस मुहिम से जुड़ने लगी हैं। अब इस कारवां में फूलमती, रेनू, नंदिनी, गीता देवी, अकिला देवी, सुधा भी आ गईं हैं। उनका कहना है कि पहले मजदूरी करके जीवन-यापन कर रहे थे, लेकिन नीम ने किस्मत बदल दी है। नीम के वृक्षों ने हमें आत्मनिर्भर बनाया है, इसलिए रक्षाबंधन के दिन राखी बांध कर हम उनकी सलामती की प्रार्थना करते हैं।
आत्मनिर्भरता की इस मुहिम की
जितनी सराहना की जाए कम है। मुहिम से जुड़े लोग न सिर्फ प्रकृति की सेवा कर रहे हैं, बल्कि एक दूसरे का सहयोग टीम भावना के तहत कर रहे हैं। यह बेहतर प्रयास है अन्य लोगों को इससे सीख लेने की आवश्यकता है।
- त्रिभुवन, एसडीएम, इटवा, सिद्धार्थनगर