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तरस रही आबादी, फिर भी पानी की बर्बादी

जागरण संवाददाता, एटा: दक्षिण अफ्रीका के शहर केपटाउन में पानी खत्म हो चुका है। वहां पान

By JagranEdited By: Published: Thu, 22 Mar 2018 10:47 PM (IST)Updated: Thu, 22 Mar 2018 10:47 PM (IST)
तरस रही आबादी, फिर भी पानी की बर्बादी
तरस रही आबादी, फिर भी पानी की बर्बादी

जागरण संवाददाता, एटा: दक्षिण अफ्रीका के शहर केपटाउन में पानी खत्म हो चुका है। वहां पानी के लिए मारामारी मची हुई है। दो वर्ष पहले महाराष्ट्र के लातूर में भयंकर सूखे के दौरान पीने तक को पानी नहीं रहा। सरकार को ट्रेन से पानी भेजना पड़ा। वहीं बुंदेलखंड में भी सूखे जैसे हालात रहे थे और पानी की खासी किल्लत थी। इन सब परिस्थितियों को देख-सुनकर न सिर्फ दुख होता है, बल्कि माथे पर ¨चता की लकीरें भी ¨खच जाती हैं। आज नहीं तो कल, इस तरह के हालात यहां भी हो सकते हैं, यह विचार भी बेचैन कर देता है। इस सबके बावजूद पानी की बर्बादी पर लगाम नहीं कसी जा रही है। जिम्मेदार मौन साधे सबकुछ देख रहे हैं।

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सभी विकासखंड क्षेत्रों में साल दर साल भूजल स्तर तेजी से नीचे खिसक रहा है। हैंडपंप पानी छोड़ते जा रहे हैं। पानी की सार्वजनिक सुविधा न मिलने से आवासीय और व्यवसायिक इकाइयों में लोगों ने पानी के लिए बेहिसाब बो¨रग कराकर सबमर्सिबल पंप लगा लीं। निजी इंतजामों से पानी की भरपूर उपलब्धता का दुरुपयोग भी खूब हो रहा है। उसी का परिणाम है कि धरती की कोख लगातार सूख रही है।

पानी की बर्बादी घरों से लेकर सड़कों तक हो रही है। शहरी क्षेत्र के 50 फीसद से अधिक घरों में सबमर्सिबल पंप लगे हैं। इससे आवश्यकता से कहीं अधिक पानी का दोहन किया जा रहा है। आसानी से पानी मिलने के कारण घर और सड़कों की धुलाई में लोग काफी पानी बहाते नजर आ जाते हैं। इसके अलावा शहर में दो दर्जन से अधिक वाहन धुलाई केंद्र हैं। जहां औसतन प्रतिदिन पांच से सात हजार लीटर पानी से वाहनों की धुलाई की जाती है। यह पानी नालियों में पहुंचकर बर्बाद हो जाता है। एक बड़ी वजह आरओ प्लांट भी हैं। शहरी क्षेत्रों में चार अधिकृत और करीब तीन दर्जन अनाधिकृत रूप से आरओ प्लांट चलाए जा रहे हैं। इसमें पानी शुद्ध करने के दौरान लगभग चार गुना पानी बहाया जाता है। जिसे सीधे-सीधे नाली में ही बहा दिया जाता है। अमृत से कसेगा बर्बादी पर शिकंजा

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शहर में अनाधिकृत बो¨रगों पर अमृत (अटल नवीकरण और शहरी परिवर्तन मिशन) जल्द शिकंजा कसेगा। इस योजना के तहत शहर के उन इलाकों को चिन्हित कर कार्ययोजना बनाई गई है, जहां वर्तमान में पालिका की जलापूर्ति नहीं पहुंच रही। योजना के तहत इन इलाकों में पाइप लाइन की मरम्मत, जरूरत पर नई पाइप लाइन, कनेक्शन आदि कार्य किए जाएंगे। इलाकों को पेयजल कनेक्शन से आच्छादित करने के बाद वहां अनाधिकृत निजी बो¨रग बंद कराई जाएंगी। इनकी भी सुनिए

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शहरी क्षेत्र में बो¨रग के लिए पालिका से अनुमति लेना जरूरी होता है। नगर में बड़ी संख्या में अनाधिकृत रूप से बना अनुमति लिए बो¨रग कराकर निजी सबमर्सिबल चलाई जा रही हैं। जिससे काफी जल दोहन हो रहा है। जल्द ही ऐसी अनाधिकृत बो¨रग को चिन्हित कर कार्रवाई का प्रस्ताव तैयार किया जाएगा। वहीं आरओ प्लांट संचालन के लिए वाटर हार्वे¨स्टग सिस्टम भी होना जरूरी है। इसकी पड़ताल की जाएगी।

- सोवरन ¨सह, जलकल प्रभारी, नपाप एटा

दो किमी दूर से पानी ढो रहे महानमई के बा¨शदे

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जासं जलेसर: पानी की अनुपलब्धता के हालात हमसे भी कोई बहुत दूर नहीं हैं। खासतौर से जलेसर विकासखंड क्षेत्र तो इस समस्या से वर्षों से बुरी तरह जूझ रहा है। यहां अधिकांश क्षेत्र में खारा पानी है। क्षेत्र के गांव महानमई के हालात भी बद से बदतर होते जा रहे हैं। यहां के खारे पानी को पीना तो दूर, कृषि कार्यों में भी प्रयोग नहीं किया जा सकता। पशु भी इस पानी को पीना पसंद नहीं करते हैं। अगर कोई तीव्र प्यास की हालत में यह पानी पी ले तो बीमारी के रूप में उसे खामियाजा भुगतना पड़ जाता है।

करीब चार साल पहले पिछली सरकार में यहां महानमई और नगला मीरा के बीच पाइप पेयजल परियोजना की स्थापना कराई गई। टंकी का निर्माण भी हुआ। लोगों को लगने कि अब उनकी पानी की समस्या का अंत होने जा रहा है। लेकिन बिछाए जाने के तुरंत बाद ही पाइप लाइन टूट गई और इस परियोजना से कभी जलापूर्ति नहीं हो सकी। आज तक क्षतिग्रस्त पाइप लाइन को बदलवाया नहीं गया। जिससे गांव के लोगों का पेयजल संकट वहीं का वहीं रहा। गांव से करीब दो किमी दूर हाथरस रोड पर बंबा के नजदीक मीठा पानी है। यहां लोगों ने आपस में चंदा कर तीन हैंडपंप लगवा लिए हैं। जिनसे पानी भरने के लिए सुबह से देरशाम तक लोगों की भीड़ लगी रहती है। लोग साइकिल, मोटरसाइकिल पर केन-डिब्बों आदि में पानी भरकर घरों तक पहुंचाते हैं। जिससे रोजमर्रा के काम चलते हैं। गांव के हरस्वरूप, रमन, रूपेश आदि लोगों ने बताया कि काफी रुपया खर्च होने के बावजूद हम लोगों को पेयजल परियोजना का कोई लाभ नहीं मिल रहा है। जरूरी कामों को छोड़कर दो किमी दूर से पानी भरना पड़ रहा है। जिसमें समय और ऊर्जा बर्बाद होती है। जिन लोगों के घरों में पानी ढोने वाला कोई स्वस्थ व्यक्ति नहीं है, ऐसे लोगों का संकट और बढ़ जाता है।


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