भूगर्भ जल प्रदूषित करने वालों पर शिकंजा जरूरी
प्लाटों में भरा गंदा पानी पर कोई परवाह नहीं सरकारी भवनों में भी नहीं जल संचयन की व्यवस्था
एटा, जासं। जमीन पर पानी दूषित हुआ तो जलस्त्रोत भी नहीं बच सके और जल प्रदूषण पाताल तक पहुंच गया। भूगर्भ जल को दूषित करने वालों की लंबी फेहरिस्त है।
जगह-जगह कीचड़युक्त जलभराव, जलेसर की शोरा फैक्ट्रियां, नदियों का प्रदूषित पानी, नदियों में शवों को बहाना आदि जल दूषित होने के प्रमुख कारण हैं। शहरी क्षेत्रों में तमाम प्लाटों में जलभराव दिखाई देता है। आखिर यह गंदा पानी किसी न किसी तरीके से जलस्त्रोतों तक पहुंचता है। इसके लिए कोई न कोई जिम्मेदार है ही। सरकार ने अब प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ सात साल कैद का प्रावधान किया है। वहीं जिलाधिकारी ने लोगों को चिह्नित कर कार्रवाई की बात कही है।
गांवों में लोगों के तालाबों, नहरों में नहाने, कपड़े धोने, पशुओं को नहलाने आदि से भी जलस्त्रोत प्रदूषित होते हैं। गांवों के बाहर कचरा एकत्रित कर दिया जाता है। ऐसे स्थान के पास अगर नदी है और बारिश होती है तो प्रदूषित कचरे के अंश जलस्त्रोतों तक पहुंचते हैं। पर्यावरणविद ज्ञानेंद्र रावत का कहना है कि गांवों में शवों को पानी में बहाने की परंपरा भी है, लेकिन जब यह शव सड़-गल जाते हैं तो भी जलस्त्रोत तक प्रदूषण के अवशेष पहुंचते हैं।
रैन वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम सरकारी भवनों में अनिवार्य है, लेकिन यहां तो किसी भी सरकारी बिल्डिग में यह सिस्टम दिखाई नहीं देता। नियम यह भी है कि भवनों के नक्शे तब तक पास नहीं होंगे जब तक नक्शे में हार्वेस्टिग प्रोजेक्ट शामिल नहीं होगा। एटा में ही तमाम ऊंची इमारतें बनती चली जा रहीं हैं, मगर यह सिस्टम नहीं है। शोरा फैक्ट्रियों के कारण भी हुआ जल प्रदूषण:
एटा में प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ एक बार ही कार्रवाई हुई है। जलेसर में 32 शोरा फैक्ट्रियां थीं जिन्हें तीन साल पूर्व तत्कालीन एसडीएम संदीप गुप्ता ने बंद करा दिया था। तब से काम बंद है। होता यह था कि शोरा कारखानों में बेस्ट कचरा जमीन के अंदर दबा दिया जाता था जिससे जलस्त्रोत प्रदूषित होते रहे और पहले से ही पनप रही खारे पानी की समस्या और ज्यादा बढ़ गई। हालांकि इस समय शोरा फैक्ट्रियां बंद हैं, लेकिन पहले के प्रदूषण ने जलस्त्रोत दूषित कर दिए। प्रशासन के अंकुश के बाद कारखानों के मालिकों ने दूसरे स्थानों पर काम शुरू कर दिया है। प्रदूषण फैलाने वालों को चिह्नित करना जरूरी:
प्रशासन को भलीभांति पता है कि गंदे पानी का भराव कहां है। कहां कीचड़युक्त तालाब है और इसके लिए कौन जिम्मेदार है। आज तक चिह्नित कर कोई कार्रवाई नहीं की गई। जबकि कम से कम ऐसे लोगों को ही चिह्नित कर लिया जाए तो संख्या में बहुतायत में निकलकर सामने आएगी। नदियों में शव बहाने पर पाबंदी है, लेकिन इसका अनुपालन नहीं होता। ग्रामीण क्षेत्रों में तमाम लोग शवों का जलप्रवाह कर देते हैं। सबमर्सिबल से घट रहा जलस्तर:
शहरों और कस्बों को तो छोड़िए ग्रामीण क्षेत्रों में सबमर्सिबल की बहुतायत है, हालांकि जिले में कितने सबमर्सिबल हैं इसका आंकड़ा तो किसी विभाग के पास नहीं है मगर गांवों में जगह-जगह यह छोटे पंप दिख जाते हैं। इनसे किसान सिचाई तक करते हैं। जहां जलस्तर घटा है वहां घुलित ठोस पदार्थ की मात्रा सीवरेज वाटर सी पाई गई है। इसके अलावा सीसा क्रोमियम, लोहा, कॉपर, जिक के तत्व भी पाए जा चुके हैं। सरकार ने भूगर्भ जल दूषित करने वालों पर सजा तथा जुर्माना का प्रावधान किया है। ऐसे लोगों को चिह्नित किया जाएगा जो जल दूषित कर रहे हैं। उनके खिलाफ कार्रवाई भी होगी।
- सुखलाल भारती, जिलाधिकारी