बिना रसायन सब्जियां उगाकर तोड़ रहे मिथक
जागरण संवाददाता, एटा: यह सिर्फ किसानों का मिथक है कि विभिन्न प्रकार के हानिकारक रसायन के कारण वह फसलों और जमीन को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
जागरण संवाददाता, एटा: यह सिर्फ किसानों का मिथक है कि विभिन्न प्रकार के हानिकारक रसायनों का सब्जियों में प्रयोग कर अच्छा लाभ प्राप्त किया जा सकता है। किसानों के कुछ इसी तरह के मिथक को एक युवा किसान ने तोड़ते हुए बिना रसायनों के ही बेहतर सब्जी उत्पादन दिखाकर उन्हें सीख दी है। अपने ही अनुभवों और कुछ कृषि विशेषज्ञों की सलाह के बाद युवा किसान की सब्जियों की रसायन रहित खेती के गुर सीखने के लिए तमाम किसान पहुंचते हैं।
यह युवा किसान अलीगंज तहसील क्षेत्र के गांव मानपुरा निवासी सोनू चौहान हैं। कहने को तो बीएससी के छात्र भी हैं, लेकिन एक घटनाक्रम ने उन्हें समय से पहले ही किसानी में हाथ अजमाने के लिए प्रेरित कर दिया। आगरा के किसी चिकित्सक के यहां अपने रिश्तेदार को कई साल पहले दवा दिलवाने गए तो एलर्जी रोगियों की काफी संख्या देखी। कोई फेंफड़ा, कोई चर्म रोग के अलावा रक्त संक्रमण के रोगी भी उनमें शामिल थे। चिकित्सक रसायनों का ही असर फल, सब्जी आदि के रूप में रोग के लिए जिम्मेदार बता रहे थे। वहां से लौटने के बाद ऐसी सब्जियां उगाने की ठान ली, जोकि पूरी तरह से रसायनों के प्रयोग से मुक्त हों। कुछ किताबों का संग्रह किया और एक ही परिणाम निकाला कि मृदा से लेकर सब्जियों की सुरक्षा में कीटनाशक रसायनों का प्रयोग न हो तो सब्जियां भी रसायनमुक्त होंगी। इसी दशा में वर्ष 2012 से उन्होंने ढाई बीघा खेत में सब्जियों की खेती शुरू की। खुद गोबर व अन्य तरीकों से कंपोस्ट खाद तैयार करते वहीं नीम व गोमूत्र से कीटनाशकों का प्रयोग सब्जी पर करने लगे। पहले तो बाजार से बीज खरीदकर प्रयोग किए, लेकिन एक साल बाद ही खुद की रसायनमुक्त सब्जियों से बीज तैयार कर लिए। 2014 में उद्यान विभाग ने सब्जियों का परीक्षण कराया तो पूरी तरह से रसायनमुक्त थीं। स्पष्ट हो गया कि खुद किसान सब्जियों को जहरीला बनाकर निजस्वार्थ के लिए दूसरों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ कर रहे हैं। रसायन मुक्त सब्जियों के मामले में सिर्फ 22 साल की उम्र के सोनू की पहचान कृषि क्षेत्र से जुड़े लोगों में भी बना चुकी है। गुणवत्ता और उत्पादन दोनों बेहतर
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बिना रसायन उगाई जा रहीं सब्जी का उत्पादन भी निजी खाद और कीटनाशकों से बेहतर होता है। गुणवत्ता के मामले में उनकी सब्जियों को जिला प्रदर्शनी के अलावा अलीगढ़ व पंतनगर की प्रदर्शनियों में भी पुरस्कार मिले हैं। वह मौसमी सब्जियों को खासकर हरी सब्जियां उगाने को तरजीह देते हैं। उनका उद्देश्य कमाई करना नहीं, बल्कि क्षेत्र में रोग ग्रस्त लोगों को सस्ती रोग मुक्त सब्जियां उपलब्ध कराने और अन्य किसानों को भी इस ओर प्रेरित करने का उनका उद्देश्य है। क्षेत्र से तमाम लोग उनके गांव तक पहुंचकर खुद सब्जियां खरीदकर ले जाते हैं। इस तरह की स्थिति रसायनों का प्रयोग करने वाले किसानों का भी मिथक तोड़ रही है कि बिना रसायनों के सब्जियों का अच्छा उत्पादन नहीं हो सकता। जैविक रूप से उगाई जाने वाली सब्जियां गुणवत्ता में बेहतर साबित हो रही हैं। यह कहते कृषि विशेषज्ञ
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डॉ. सोमवीर ¨सह कहते हैं कि सब्जियों को खुद किसानों ने जहरीला बनाया है। रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग का असर सब्जियों तक पहुंचकर लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। सोनू के पास सिर्फ देसी खाद और कीटनाशकों का फार्मूला है, जो हर तरह से सब्जियों को शुद्ध ही नहीं स्वादिष्ट बनाकर लोगों की सेहत के लिए सुरक्षित है। अन्य किसान भी रसायनमुक्त फसलें उगा सकते हैं।