बंदरों को करा दी लाखों रुपये की सैर
एटा जी हां सुनकर चौंकेंगे जरूर। बात ही कुछ ऐसी है। सरकारी मशीनरी ने बंदरों को पकड़कर लोगों को राहत दिलाने की बात कही। जिसमें लाखों रुपये खर्च भी किए गए। लेकिन एक जिले से पकड़कर दूसरे जिले के खाली स्थानों में उन्हें छोड़ दिया गया। गाड़ियों में सैर करते हुए बंदर फिर आबादी क्षेत्रों में घुस आए और आतंक का पर्याय बन गए हैं।
जागरण संवाददाता, एटा: जी हां, सुनकर चौंकेंगे जरूर। बात ही कुछ ऐसी है। सरकारी मशीनरी ने बंदरों को पकड़कर लोगों को राहत दिलाने की बात कही। जिसमें लाखों रुपये खर्च भी किए गए। लेकिन एक जिले से पकड़कर दूसरे जिले के खाली स्थानों में उन्हें छोड़ दिया गया। गाड़ियों में सैर करते हुए बंदर फिर आबादी क्षेत्रों में घुस आए और आतंक का पर्याय बन गए हैं।
शहर सहित सभी कस्बों और कई ग्रामीण क्षेत्रों में बंदरों का आतंक हावी है। पिछले वित्त वर्ष में शासन ने सभी जिलों में बंदर पकड़वाने के लिए बजट और निर्देश दिए। इसके लिए एटा को तीन लाख रुपये दिए गए। शासन स्तर से मथुरा के एकराम और बिलाल को यह ठेका मिला। वन विभाग का दावा है कि ठेकेदारों ने जिला मुख्यालय सहित तीनों तहसील क्षेत्रों से 1250 बंदर पकड़कर जिले की सीमा से काफी दूर बिना आबादी वाले इलाकों में छुड़वाए गए। लेकिन इसी तरह की प्रक्रिया पड़ोसी जिलों में भी अपनाई गई और बंदरों को इस ओर छोड़ दिया गया। जो निर्जन स्थानों से भटकते हुए आबादी वाले इलाकों में पहुंच गए। शीतलपुर ब्लॉक क्षेत्र के गांव नगला रसूल और जिरसमी के रहने वाले संतोष, श्रीकिशन, रोहित, सुधीर आदि लोगों ने बताया कि पहले उनके गांव में एक भी बंदर नहीं आता था। कुछ दिन पहले एक गाड़ी आई, जो कुछ दूरी पर बंदरों को छोड़ गई। ये बंदर गांव में चले आए और यहीं डेरा डाल दिया। जीपीएस लोकेशन से हुआ था सत्यापन
ठेकेदार किसी तरह की गड़बड़ी न करें, इसके लिए इंतजाम तो काफी किए गए। बंदरों को पकड़कर जिला मुख्यालय लाकर फोटो खिचाए गए। इसके बाद जीपीएस सिस्टम के जरिए गाड़ी को 50-60 किमी दूर गंगा से पार भेजकर बंदरों को छोड़ा गया। अधिकारी तो अपने प्रयासों और योजना के हिसाब से सही थे। लेकिन खेल यही हुआ कि एक जिले के बंदर दूसरे जिले में पहुंचते रहे।