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किसान का दर्द: गांव तो दूर वैशाखियों पर चल रही मुख्यालय की लैब

एटा जासं। मिट्टी की जांच के लिए सरकार का जितना जोर है उसके विपरीत तंत्र उतना ही कमजोर है। यहां सरकार के हर गांव में मृदा परीक्षण लैब की व्यवस्था के दावे तो अभी काफी दूर हैं। मुख्यालय की लैब का भी हाल यह है कि इसे संचालित करने के लिए बैशाखियों का सहारा लेना पड़ा है। तहसीलों पर खोली गईं मिनी लैब तो पिछले कई सालों से बंद ही हो गईं। ऐसे में दूरदराज के किसानों को मुख्यालय तक मिट्टी जांच के लिए दौड़ लगाना मजबूरी है।

By JagranEdited By: Published: Fri, 01 Nov 2019 10:47 PM (IST)Updated: Sat, 02 Nov 2019 06:18 AM (IST)
किसान का दर्द: गांव तो दूर वैशाखियों पर चल रही मुख्यालय की लैब
किसान का दर्द: गांव तो दूर वैशाखियों पर चल रही मुख्यालय की लैब

एटा, जासं। मिट्टी की जांच के लिए सरकार का जितना जोर है, उसके विपरीत तंत्र उतना ही कमजोर है। यहां सरकार के हर गांव में मृदा परीक्षण लैब की व्यवस्था के दावे तो अभी काफी दूर हैं। मुख्यालय की लैब का भी हाल यह है कि इसे संचालित करने के लिए बैशाखियों का सहारा लेना पड़ा है। तहसीलों पर खोली गईं मिनी लैब तो पिछले कई सालों से बंद ही हो गईं। ऐसे में दूरदराज के किसानों को मुख्यालय तक मिट्टी जांच के लिए दौड़ लगाना मजबूरी है।

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वर्ष 2015-16 में मिट्टी पहचानो अभियान के पहले चरण के साथ अलीगंज और जलेसर में भी मिनी मृदा परीक्षण प्रयोगशाला खोली गईं। अभियान शुरू हुआ और कुछ दिन यह लैब संचालित हुईं। हालांकि दो साल पहले शासन ने युवाओं को रोजगार देने के लिए गांव-गांव लैब स्थापित कराने की योजना को काफी प्रचारित किया। तमाम ग्रामीण युवा भी इंतजार करते रहे, लेकिन अब तक कुछ भी न हुआ। कहने को जिला मृदा परीक्षण प्रयोगशाला में सात पद निर्धारित हैं। इसके विपरीत यहां सिर्फ एक पद पर ही नियुक्ति रही। जब अभियान तेज हुआ तो लैब पर बोझ बढ़ने की स्थिति में जलेसर और अलीगंज से मृदा विश्लेषक, तकनीकी सहायक मुख्यालय से संबद्ध कर लिए गए। वहां की लैब दो साल से ही बंद हैं। दोनों तहसीलों का कार्य एटा में ही किया जा रहा है। इसी कारण जलेसर व अलीगंज के किसानों को 60 से 80 किलोमीटर तक दौड़ना होता है। अभियान के दौरान स्टाफ और संसाधनों की कमी के कारण 60 फीसद तक नमूने प्राइवेट लैबों पर विश्लेषित कराने पड़े। मौजूदा संसाधनों में मुख्यालय पर 300 से 350 नमूने ही दो शिफ्ट में परीक्षित हो पाते हैं। यही वजह है कि फसलों की रोपाई हो जाने के महीनों बाद तक किसानों को रिपोर्ट मिलती रही हैं। नहीं मिली आइसीटीसी मशीन

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प्रभारी मृदा परीक्षण प्रयोगशाला कोमल प्रताप सिंह बताते हैं कि आइसीटीसी मशीन से नमूनों की जांच जल्दी हो जाती है। यह मशीन उपलब्ध नहीं। पिछले साल सिर्फ मिट्टी के सूक्ष्मतत्वों की जांच को एएएस मशीन मिली। इससे यही फायदा हुआ कि जो किसान सूक्ष्मतत्वों की जांच के लिए अलीगढ़ तक जाते उन्हें यह सुविधा एटा में उपलब्ध है। ----

नमूनों की जांच के अनुरूप स्टाफ और संसाधनों की कमी से शासन को अवगत कराया जाता रहा है। सीमित संसाधनों में समयबद्ध और सटीक जांच कर स्वास्थ्य कार्ड देना हमारी प्राथमिकता है।

वीके सचान, उपनिदेशक अनुसंधान किसानों की बात

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- पिछले साल अभियान के दौरान मिट्टी का नमूना लिया गया, लेकिन रिपोर्ट आज तक नहीं मिली। अब खुद जांच को आना पड़ा है। प्रवीश कुमार

- इस बार तो कुछ गांवों से ही नमूने लिए गए हैं। इस तरह सरकार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड का लाभ लेने में ही परेशानी बढ़ा दी है। ललित सिंह


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