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पानी पर सबका हक, बूंद-बूंद बचाने का लिया संकल्प

जागरण संवाददाता, एटा: जागरण के जल जागरण अभियान बुधवार को जन-जन से सीधे-सीधे जुड़ा। जल संकट की स्थिति

By JagranEdited By: Published: Wed, 28 Mar 2018 06:20 PM (IST)Updated: Wed, 28 Mar 2018 06:20 PM (IST)
पानी पर सबका हक, बूंद-बूंद बचाने का लिया संकल्प
पानी पर सबका हक, बूंद-बूंद बचाने का लिया संकल्प

जागरण संवाददाता, एटा: जागरण के जल जागरण अभियान बुधवार को जन-जन से सीधे-सीधे जुड़ा। जल संकट की स्थिति और जागरण के अभियान का महत्व समझते हुए नागरिकों ने जल संरक्षण का संकल्प लिया। गोष्ठियों में पानी के महत्व और बचाव पर मंथन किया गया। वक्ताओं ने कहा कि पानी पर सबका हक है। हमारे बाद आने वाली पीढि़यों को भी पानी मिलना चाहिए। इसके लिए हमें पानी की बूंद-बूंद बचानी होगी।

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कचहरी परिसर में वरिष्ठ अधिवक्ता सीपी ¨सह ने साथी और कनिष्ठ अधिवक्तागणों को जल संरक्षण की शपथ दिलाई। उन्होंने कहा कि चार सदस्यों वाला परिवार औसतन 960 लीटर प्रतिदिन व 350400 लीटर प्रति वर्ष पानी खर्च करता है। वहीं, रोजाना केवल तीन फीसद जल ही पीने तथा भोजन पकाने के लिए उपयोग होता है। बाकी का पानी अन्य कार्यो पर व्यय होता है। थोड़ी सी सावधानी बरत अनमोल पानी की रक्षा की जा सकती है। जो पानी हम आज बचाएंगे वो कल हमारे और हमारी नई पीढि़यों के काम आएगा। केंद्र सरकार के सहायक स्टैडिंग काउंसिल रविकांत मिश्रा ने कहा कि पृथ्वी पर जल नहीं होगा तो जीवन भी संभव नहीं होगा। इसलिए जल को व्यर्थ न गंवाए और पीने के पानी को धुलाई, सफाई जैसे कार्यों में बर्बाद न करें। इस दौरान जॉय कुलश्रेष्ठ, अनूप शर्मा, र¨वद्र कुमार ¨सह, नितिन, चंद्रेश शर्मा, सुनील प्रताप ¨सह, आंचल शुक्ला आदि अधिवक्ताओं ने पानी बचाने के लिए हर संभव प्रयास करने और अन्य लोगों को भी जागरूक करने का संकल्प लिया।

आगरा रोड स्थित श्याम बिहारी पब्लिक स्कूल में छात्र-छात्राओं, शिक्षकों और कर्मचारियों को पानी की अहमियत समझाते हुए इसको बर्बाद न करने की शपथ दिलाई गई। शिक्षकों ने कहा कि हम आज ऐसी स्थिति में हैं कि पानी का संकट दूर नहीं है। बरसात में साल दर साल कमी देखने को मिल रही है। भूगर्भ जल में कमी होती जा रही है। ऐसा ही चला तो बहुत जल्दी हम पीने के पानी के लिए भी तरस जाएंगे। ऐसे में जरूरी है कि हम नहाने, कपड़े-बर्तन धोने, पालतू पशुओं को नहलाने, धुलाई, बगीचों आदि में पानी कम से कम खर्च करें। ऐसी व्यवस्था की जाए, जिससे कि पानी को दो-तीन बार प्रयोग में लिया जा सका। नहाने या कपड़े धोने वाले पानी का शौचालय, धुलाई तथा बगीचों में प्रयोग किया जा सकता है।

लोग बोले

जलेसर, सकीट ब्लॉक क्षेत्र के कई गांव खारे पानी की समस्या से त्रस्त हैं। वे लोग मीठे पानी का महत्व अच्छी तरह समझते हैं। ऐसे ही सभी लोग समझ लें तो भविष्य में अन्य ब्लाकों को जलेसर-सकीट होने से बचाया जा सकेगा।

- डॉ. राकेश मधुकर, पूर्व प्राचार्य जेएलएन डिग्री कॉलेज

पानी बचाने के लिए बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन प्रयास और क्रियान्वयन का काफी अभाव है। सभी भवनों में यदि रेन वाटर हार्वे¨स्टग प्रोजेक्ट लगाने लगें तो बरसात के पानी से भूजल में अच्छा खासा इजाफा किया जा सकता है।

- डॉ. एके सक्सेना, वरिष्ठ फिजीशियन

घर से लेकर बाहर तक बिना पानी के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। इस बात को ध्यान में रखते हुए हमें अब सजग हो जाना चाहिए। पानी की एक-एक बहती बूंद हमें बाद में पछतावे का अहसास न कराए, इसके लिए उसे बहने से बचाएं।

- डॉ. श्यामलता वेद, समाजसेविका एवं परामर्शदाता महिला हैल्पलाइन

सभी लोग अच्छी तरह जानते हैं कि पानी धीरे-धीरे कम होता जा रहा है और भविष्य में इसकी उपलब्धता बहुत कम होगी। इसके बावजूद लोग जल संरक्षण की दिशा में आगे नहीं बढ़ रहे।

-र¨वद्र कुमार ¨सह, एडवोकेट

केपटाउन, लातूर, यूपी में बुंदेलखंड के हालात देखकर भी लोगों की आंखें नहीं खुल रहीं। जानकर भी अनजान बनना और पानी बचाने के प्रयास न करना भविष्य में हमारे लिए ही समस्या पैदा करेगा।

-विनोद जौहरी, एडवोकेट

गांव ओमनगर में एक दशक से जल संकट

जलेसर: गांव ओमनगर एक दशक से जल संकट से जूझ रहा है। लोगों को पेयजल की भारी परेशानी है। हैंडपंप और सबमर्सिबल से मिलने वाला पानी इतना खारा है कि इसे पीना तो दूर, कृषि कार्यों तक में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। जिसके चलते खेती-बाड़ी भी प्रभावित रहती है। तमाम परिवार पलायन करने को मजबूर हो गए। करीब आठ साल पहले पास के एक गांव में पाइप पेयजल परियोजना की स्थापना हुई थी। जिससे इस गांव को भी कनेक्शन उपलब्ध कराए गए। घर-घर मीठा पानी पहुंचने लगा, जो लोगों के लिए किसी सपने के सच होने से कम नहीं था। लेकिन इस सपने सरीखी हकीकत को बहुत जल्दी नजर लग गई। कुछ महीनों में ही परियोजना की बो¨रग फेल हो गई, जो सही नहीं हो पाई। इसके कुछ साल बाद गांव के लोगों ने चंदा कर करीब आधा किमी दूर गोथुआ माइनर के पास एक नलकूप की स्थापना कराई। यहां से मीठा पानी पाइप लाइन के जरिए गांव तक पहुंचने लगा। लेकिन यह क्रम भी महीने भर ही चल सका। बाद में वहां हैंडपंप लगा दिया गया। अब गांव के लोग सुबह से शाम तक इस हैंडपंप से पानी ढोकर घरों पर लाते हैं। गांव के श्यामस्वरूप, नंद¨सह, रामेश्वर का कहना है कि फरियाद करते-करते थक चुके हैं। अब तो सरकार और अधिकारियों से आस भी नहीं रही है। शायद ऐसे ही ¨जदगी कटनी है।


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