अब तक..पहली बार स्वागत, अगली बार विदाई
जलेसर विधानसभा का मिजाज अभी मैदान सजना बाकी सिर्फ बसपा और सपा ने ही की है प्रत्याशी की घोषणा हर बार चुनाव में बदलता रहा मतदाताओं का मिजाज
जासं, एटा: जिले की जलेसर विधानसभा सीट ऐसी है जिसमें पिछले तीन दशक में कोई भी प्रत्याशी रिपीट नहीं हो पाया। हर विस चुनाव में प्रत्याशी बदलते रहे। चुनावी जंग में भाजपा, सपा और बसपा ही मुख्य धुरी रहे। समीकरणों में भी उलटफेर खूब देखने को मिला। इस दौरान टीटीजेड, खारा पानी जैसे मुद्दे गूंजते रहे।
जलेसर विधानसभा क्षेत्र एक बार फिर चुनाव के लिए तैयार है। मैदान सज चुका है। बसपा और सपा के योद्धा घोषित हो चुके हैं। अब तक तो मतदाता एक बार स्वागत दूसरी बार प्रत्याशियों की विदाई ही करते रहे हैं। उन्होंने प्रत्याशी ही नहीं दलों को भी विदा किया।
जलेसर विधानसभा सीट पर वर्ष 1993 के बाद पार्टियों ने भले ही प्रत्याशी दोहराए, लेकिन मतदाताओं ने दोहराने वाले प्रत्याशी को मंजूरी नहीं दी और उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 1993 से लेकर अब तक छह बार विधानसभा का चुनाव हो चुका है, संघर्ष की तस्वीर हर बार लगभग एक जैसी ही रही। 1993 में इस सीट पर बसपा का उम्मीदवार नहीं था। इस वजह से उस दौर में सपा और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला हुआ। कांग्रेस इस चुनाव में नहीं टिक पाई और मात्र छह हजार 959 वोटों पर उसे संतोष करना पड़ा। जीत सपा के रघुवीर सिंह की हुई और भाजपा के माधव नट चुनाव हार गए। 1996 का चुनाव आया तो भाजपा ने मिथलेश अगरिया को टिकट दिया, जबकि सपा ने रघुवीर सिंह पर फिर दांव चला, मगर मतदाताओं ने उन्हें नकार दिया। इस बार बसपा के प्रत्याशी महीपाल सिंह चुनाव मैदान में थे इसलिए मुकाबला त्रिकोणीय हो गया हालांकि बसपा को तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा। सपा दूसरे नंबर पर रही और भाजपा को जीत मिली।
2002 के चुनाव में सपा ने प्रत्याशी बदल दिया। पार्टी का यह निर्णय ठीक रहा और अनार सिंह दिवाकर इस सीट पर सपा की टिकट पर चुनाव लड़े और जीत गए। भाजपा के राम सिंह दूसरे नंबर पर रहे। रघुवीर सिंह ने बसपा से चुनाव लड़ा पर तीसरे नंबर पर चले गए। 2007 के चुनाव में भाजपा ने पिछली हार से सबक लिया और इस बार पूर्व विधायक मिथलेश अगरिया के पति कुबेर सिंह अगरिया को टिकट दिया, वे चुनाव जीत गए। सपा ने अनार सिंह दिवाकर को दोहराया था, मगर वे तीसरे नंबर पर चले गए। इस चुनाव में भाजपा का मुकाबला बसपा के रनवीर सिंह कश्यप से हुआ था।
2012 के चुनाव में सपा की लहर थी। इस चुनाव में सपा के वरिष्ठ नेता रामजीलाल सुमन के पुत्र रणजीत सुमन को टिकट दिया। दांव फिट बैठा और वे चुनाव जीत गए। उनका मुकाबला बसपा के ओमप्रकाश दलित से हुआ। बसपा यहां दूसरे नंबर पर रही। अनार सिंह दिवाकर को जब सपा से टिकट नहीं मिला तो वे कांग्रेस में चले गए और 20 हजार 794 वोट भी हासिल किए। इस चुनाव में भाजपा ने कुबेर सिंह को टिकट नहीं दिया, उनकी पत्नी मिथलेश अगरिया को चुनाव मैदान में उतारा, मगर वे चौथे नंबर पर रहीं। 2017 के चुनाव में सपा ने फिर से रणजीत सुमन पर दांव चला, लेकिन वे भाजपा के संजीव दिवाकर से हार गए। बसपा के मोहन सिंह हैप्पी तीसरे नंबर पर रहे। जीते प्रत्याशियों को मिले वोट
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वर्ष-प्रत्याशी-पार्टी-मिले वोट
1993-रघुवीर सिंह-सपा-49423
1996-मिथलेश अगरिया-भाजपा-43101
2002-अनार सिंह दिवाकर-सपा-38462
2007-कुबेर सिंह अगरिया-भाजपा-31036
2012-रणजीत सुमन-सपा-55269
2017-संजीव दिवाकर भाजपा-81502
हारे प्रत्याशियों को मिले वोट
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वर्ष-प्रत्याशी-पार्टी-मिले वोट
1993-माधव नट-भाजपा-39949
1996-रघुवीर सिंह-सपा-30359
2002-राम सिंह-भाजपा-31361
2007-रनवीर सिंह कश्यप-बसपा-30966
2012-ओमप्रकाश दलित-बसपा-32751
2017-रणजीत सुमन-सपा-61446