चहुंओर धुआं, पराली जलाने पर प्रतिबंध बेअसर
एटा जासं। दीपोत्सव के बाद वैसे भी प्रदूषण बढ़ा लेकिन अब धान की कटती फसल के साथ पराली जलाने के मामले जिले में हर मार्ग पर ही देखे जा सकते हैं। पराली जलाने से उठ रहा धुआं पर्यावरण के साथ मिट्टी को भी प्रदूषित कर रहा है। जुर्माना तय होने के बावजूद भी किसान न तो जागरूक हो रहे और प्रशासन भी इस मामले में ढील दिए हुए हैं।
एटा, जासं। दीपोत्सव के बाद वैसे भी प्रदूषण बढ़ा, लेकिन अब धान की कटती फसल के साथ पराली जलाने के मामले जिले में हर मार्ग पर ही देखे जा सकते हैं। पराली जलाने से उठ रहा धुआं पर्यावरण के साथ मिट्टी को भी प्रदूषित कर रहा है। जुर्माना तय होने के बावजूद भी किसान न तो जागरूक हो रहे और प्रशासन भी इस मामले में ढील दिए हुए हैं।
यहां बता दें कि पिछले साल पराली जलाने के दुष्प्रभावों के प्रति किसानों को महीनेभर कृषि विभाग और वैज्ञानिकों ने जागरूक किया। खास तौर पर कृषि विज्ञान केंद्र की टीम के द्वारा तीन चरणों में पराली जलाने की आदत में बदलाव के लिए पराली के सदुपयोग भी बताए गए। किसानों की जागरूकता के लिए ऐसे कृषि यंत्रों के प्रदर्शन भी किए गए, जिनके द्वारा पराली को खेतों में ही खाद बनाने के उपाय शामिल थे। सैकड़ों किसानों ने यह गुर सीखे और पराली न जलाने की बात कही। अब दीपावली के त्योहार पर जहां पटाखों के धुएं ने वातावरण को प्रदूषित किया। वहीं दूसरी ओर धान की कटाई से खाली होते खेतों में पड़ी पराली तेजी से जलाई जाने लगी।
परिणाम सभी के सामने हैं कि दीपोत्सव के बाद क्यूआरआई 200 तक पहुंच गई। चारो ओर उठता धुआं और मौसम में छाई धुंध से दिन में भी अंधेरा सा कई दिनों से बना है। लोगों को इस प्रदूषण से सांस लेने में भी दिक्कतें बढ़ने के साथ ही धुआं का स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ रहा है। पराली जलाने के परिणाम सबके सामने हैं फिर भी किसान सुधरने को राजी नहीं। एक सप्ताह पहले ही पराली जलाने पर प्रतिबंध और जुर्माना वसूलने की हिदायत का भी असर नहीं दिख रहा। किसान ऐसे बेखौफ हैं कि सड़क किनारे खेतों में भी पराली को जलाने से हिचक नहीं कर रहे। अभी तक कृषि विभाग भी इस मामले में निष्क्रिय है। जिला कृषि अधिकारी एमपी सिंह कहते हैं कि विभागीयकर्मियों को सचेत किया गया है कि वह पराली जलाने वाले किसानों को चिह्नित करें। बिगड़ रही मिट्टी की सेहत
मृदा विशेषज्ञ डा. वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि जिन खेतों में पराली जलाई जाती है, वहां ज्यादातर मित्र कीट समाप्त हो जाते हैं। वहीं आग की गर्मी और धुएं से जैविक कार्बन भी नष्ट होने की स्थिति में खेतों की उर्वरा शक्ति क्षीण होती है। पराली का खेतों की मिट्टी के साथ जोतकर खाद बनाई जाए तो लाभकारी है। प्रदूषण का मुख्य कारण पराली व पटाखे
पर्यावरण विद ज्ञानेंद्र रावत बताते हैं कि कई सालों से दीपावली के त्योहार से ही स्मॉग देखने को मिलता है। मुख्य कारण तो पटाखे और पराली ही है, लेकिन आमजन मानस द्वारा भी कूड़े को आग लगाने या फिर धधकती भट्टियों से भी खतरा कम नहीं है।