सात करोड़ खर्च, मिटा नहीं बेसहारापन का मर्ज
सरकार की मंशा है कि गोवंश बेसहारा न रहे। वह या तो किसान के खूंटे प
एटा, जागरण संवाददाता: सरकार की मंशा है कि गोवंश बेसहारा न रहे। वह या तो किसान के खूंटे पर हो या उसे गोशालाओं में आश्रय मिले। मगर, जिले की 20 गोशाला भी बेसहारा को सहारा नहीं दे पा रही हैं। सात करोड़ से अधिक रुपये खर्च कर बनाई गई इन गोशालाओं में 2 हजार 660 गोवंश को जगह मिल गई है। मगर, इतने ही गोवंश अभी सड़कों और खेतों में घूम रहे हैं।
सरकार की सख्ती के बाद सकीट क्षेत्र के गांव वाहिद वीवीपुर और जलेसर क्षेत्र के जलेसर देहात में करीब पांच-पांच एकड़ में 2.40 करोड़ रुपये लागत से गो संरक्षण केंद्र बनाए गए। निकायों में एक-एक करोड़ की लागत से चार कान्हा आश्रय स्थल बनाए गए। 14 ग्राम पंचायतों पर बनाए गए अस्थायी गो आश्रय स्थलों पर भी एक करोड़ से अधिक रुपये खर्च किए जा चुके हैं। पशुपालन विभाग के मुताबिक जिले में चार हजार 488 बेसहारा गोवंश हैं। इनमें से दो हजार 688 को आश्रय दिया गया है। बेसहारा पशुओं की संख्या आठ साल पुरानी पशुगणना के आधार पर तय की गई है। इतने लंबे अंतराल में संख्या इसकी दो से तीन गुना तक होने का अनुमान है।
खुराक पर 1.10 करोड़ खर्च
शासन के निर्देशों के मुताबिक एक पशु के चारे के लिए हर रोज 30 रुपये दिए जाते हैं। जिलास्तरीय समिति से तहसील, वहां से ब्लॉक और इसके बाद ग्राम पंचायत स्तरीय समितियों को यह पैसा मिलता है। जिलास्तरीय समिति पशुओं की खुराक के लिए अभी तक 1.10 करोड़ रुपये दे चुकी है।
बार-बार होती मौत बताती बदहाली की दास्तां
बेसहारा गोवंशों की हालत सड़कों पर ही नहीं आश्रय स्थलों में भी बहुत अच्छी नहीं हैं। कई आश्रय स्थलों पर तो चारा-पानी और पशुओं को ठंड से बचाने के इंतजाम नहीं हैं। 25 नवंबर को जलेसर क्षेत्र की जैनपुरा में 2, 23 दिसंबर को इसी आश्रय स्थल में तीन और 12 जनवरी को मारहरा ब्लॉक के लल्लूखेड़ा आश्रय स्थल में तीन गोवंश की मौत हो चुकी है।
एक नजर में
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4488 बेसहारा गोवंश
20 आश्रय स्थल
2660 संरक्षित गोवंश
1828 गोवंश को आश्रय की दरकार
वर्जन
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'ग्राम पंचायतों में गो आश्रय स्थल बनाए जाने में देरी हो रही है। हर चौथी-पांचवी ग्राम पंचायत पर एक आश्रय स्थल होना चाहिए। जितने आश्रय स्थल हैं, उनमें क्षमता के अनुसार पशु रखे गए हैं, नियमानुसार देखभाल भी की जा रही है।'
- डॉ. रामहरि, उपमुख्य पशु चिकित्साधिकारी