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रोजी-रोटी तो गई अब घर ही ठिकाना

पैरों में सूजन सूखे हलक गोद में बच्चों को लेकर चल रहीं थकी-हा

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Mar 2020 07:36 PM (IST)Updated: Sat, 28 Mar 2020 07:36 PM (IST)
रोजी-रोटी तो गई अब घर ही ठिकाना
रोजी-रोटी तो गई अब घर ही ठिकाना

एटा,जागरण संवाददाता : पैरों में सूजन, सूखे हलक, गोद में बच्चों को लेकर चल रहीं थकी-हारी महिलाएं, हांफते उम्रदराज लोग, सड़कों पर लगी इन लोगों की लंबी कतारें। यह नजारा एटा के हाईवे का है। लोग तमाम मुश्किलें उठाते हुए दिल्ली, नोएडा, हरियाणा आदि स्थानों से मीलों लंबा सफर तय कर चले आ रहे हैं। जिन कंपनियों में यह लोग नौकरी करते थे उन्होंने इन्हें निकाल दिया और घर जाने के लिए कह दिया। ऐसे में रोजी तो चली ही गई, ऊपर से रोटी का संकट उत्पन्न हो गया। तब यह मुसाफिर अपने घर की ओर निकले हैं।

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यहां से होकर जो लोग गुजर रहे हैं उन्हें अभी आगे लंबा सफर तय करना है। कई लोग तो ऐसे हैं जिन्हें कानपुर, लखनऊ, बाराबंकी, बस्ती, गोरखपुर आदि जिलों में पहुंचना है और वाहन की कोई व्यवस्था नहीं। स्थानीय प्रशासन सिर्फ आसपास के जिलों तक के वाहन ही मुहैया करा पा रहा है। जो लोग लंबे रूट के हैं उन्हें बसें नहीं मिल पा रहीं। इनमें एक युवा दंपती रजनीश और उनकी पत्नी विनीता ऐसी हैं जो दोनों ही नोएडा में मजदूरी करते थे। इन लोगों का कहना था कि जिस दिन प्रधानमंत्री का संबोधन हुआ उसी दिन उनके ठेकेदार की तरफ से कहा गया कि वे अपने घरों को चले जाएं। आठ दिन का पैसा भी बकाया था वह भी नहीं मिला। एक दिन पैसे के इंतजार में बिता दिया। उधर पुलिस वहां रुकने नहीं दे रही, इसलिए अपनी झुग्गी-झोंपड़ी छोड़कर चले आए। कानपुर के बिल्लौर के रहने वाले श्रमिक राजकुमार की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। उन्हें भी उनके मालिक ने वापस भेज दिया। पूरा परिवार अलीगढ़ तक जैसे-तैसे आ गया, वहां से एटा तक पैदल चलकर पहुंचे, पत्नी गर्भवती है और इतना लंबा सफर, वो भी पैदल। सुनकर व्यवस्था पर सवाल उठाना लाजमी है। इन लोगों का कहना है कि जब रोजी-रोटी चली गई तब घर जाने की जरूरत महसूस की, कम से कम वहां रोटी तो मिल जाएगी। पैदल यात्री बोले

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मैं नोएडा की लग्जर कंपनी में काम करती थी। प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद मैसेज भेजकर कंपनी ने वापस जाने को कह दिया।

- प्रेमलता, कन्नौज मैं और मेरे पति बिल्डिग निर्माण में लगे थे, मगर ठेकेदार ने 100 से ज्यादा मजदूरों को लॉकडाउन के बाद घर भेज दिया।

- सरला राजपूत, जीसुखपुर एटा मैं मोबाइल कंपनी में काम करता था, हमारी कंपनी ने हम सभी 30 लोगों की सेवाएं ही समाप्त कर दीं, यह भी नहीं बताया कि कब आना है।

- शिवम, कन्नौज दिल्ली से पैदल आ रहे हैं, रास्ते में कई जिले पड़े, मगर रास्ते में कहीं भी वाहन की सुविधा नहीं मिली। 20 घंटे तक भूखा भी रहना पड़ा।

- मोहित, फर्रुखाबाद


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