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प्रयास हर वर्ष होते फिर भी छांव के लिए तरसते

दो तिहाई पौधों का भी नहीं बच पा रहा अस्तित्व कहीं प्रशासनिक तंत्र ढीला तो बेपरवाह जनमानस

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Jun 2021 06:41 AM (IST)Updated: Wed, 16 Jun 2021 06:41 AM (IST)
प्रयास हर वर्ष होते फिर भी छांव के लिए तरसते
प्रयास हर वर्ष होते फिर भी छांव के लिए तरसते

स्थल 1-जीटी रोड डिवाइडर

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नगर पालिका ने हरियाली और शहर की सुंदरता के लिए दो साल पहले शहर के जीटी रोड पर बने डिवाइडर के मध्य 1500 पौधे लगवाए। खुद पौधों के संरक्षण की जिम्मेदारी भी ली। अब हाल यह है कि डिवाइडर पर एक चौथाई पौधे भी नहीं बचे हैं। कुछ पौधे संरक्षण बिना तो अधिकांश जनमानस की मनमानी की भेंट चढ़ गए। स्थल-2- ग्राम रारपट्टी गांधी उपवन

2019 में वन विभाग ने इस स्थल पर वन क्षेत्र के उद्देश्य से 1500 पौधे लगाएं। स्थल पर वन विभाग की मेहनत सार्थक नजर आती है कि जहां विभाग के संरक्षण से 90 फीसद पौधे अभी भी जीवित हैं। स्थल-3- ग्राम पंचायत रिजोर

सकीट के रिजोर थाना परिसर के समीप पंचायत की भूमि पर वर्ष 2020 में 500 पौधे लगाए गए। पौधे लगाने के एवज में 42000 रुपया की धनराशि आहरित की गई। प्रति पौधे पर 84 का खर्चा दिखाया गया। अब हाल यह है कि यहां 15-20 पौधे भी जीवित नहीं है। जासं, एटा: प्रकृति सुधरने के लिए चेता रही है फिर भी यही हाल रहा तो आगे आने वाले समय में सांस लेना तो क्या छांव भी नसीब नहीं होगी। हर वर्ष जब भी बारिश का मौसम आता है तो हरियाली के लिए पौधारोपण का शोर तो सुनाई देता है, लेकिन कुछ साल बाद ही पौधों से आच्छादित क्षेत्र पर नजर डाली जाए तो हरियाली गायब मिलती है। पर्यावरण संरक्षण के लिए आज कल से नहीं बल्कि वर्षों से पहल की जा रही है, लेकिन परिणाम यह हैं कि प्रयासों के बावजूद हरियाली की उम्मीदें दो तिहाई भी पूरी नहीं हो पा रहीं। कहीं पौधों को जिम्मेदार विभागों की नजर लग रही है तो आम जनमानस भी संरक्षण के मामले में दूर ही दिखाई देता है।

विभिन्न कारणों से कम होते वृक्षों से उत्पन्न होने वाली समस्याओं को लेकर लगातार जागरूकता के बाद ज्यादातर लोग समझने लगे हैं। इसके बावजूद भी एक बड़ी संख्या ऐसी है जोकि सहयोग के लिए आगे आना नहीं चाहती। सब कुछ सरकार भरोसे ही मानती है। यही वजह है कि हर साल लाखों पौधों का रोपण भी कारगर नजर नहीं आ रहा है। यह एक चिता का विषय तो है ही, वहीं हर व्यक्ति के लिए भविष्य की समस्याओं का संकेत भी है। प्रशासनिक पौधारोपण की बात की जाए तो यहां फर्जीवाड़े के अलावा पौधों के संरक्षण को लेकर अनदेखी ही सामने आती है। संरक्षण को संस्थाएं करें प्रयास:

सामाजिक संस्थाएं व हरियाली की दुहाई देने वाले संगठन भी पौधे रोपने के बाद उनके जीवन को लेकर चितित नजर नहीं आते। यही वजह है कि तमाम कारणों से किए गए प्रयास कारगर नहीं हैं। कई वर्षो से बुरे पौधों से तौबा

जिले में आठ साल पहले यूकेलिप्टस तथा कोच बबूल की प्रजातियां को पौधरोपण में शामिल किया जाता रहा लेकिन अब ऐसा नहीं है। चार वर्ष से अब नीम, पपीता, अमरूद, आम, देसी बबूल, शीशम के अलावा औषधि तथा कुछ लाभप्रद प्रजातियां पौधारोपण में प्राथमिकता पर है। जरूरत संरक्षण की है। ग्राम पंचायतों में ज्यादा गड़बड़झाला:

जिले में 10 फीसद ग्राम पंचायतों ने पौधरोपण और उनके संरक्षण को अच्छे प्रयास किए, लेकिन अधिकांश पंचायतों में पौधे रोप कर सिर्फ बजट ठिकाने लगाने की स्थिति है। हालांकि पिछले दो वर्ष में जियो टैगिग से सुधार हुआ, लेकिन ग्रामीण पौधारोपण का सत्यापन न होने से हरियाली संरक्षित नहीं हो पा रही।

एक नजर पौधारोपण पर

वर्ष-कुल पौधारोपण-क्षेत्रफल

2016-8.91 लाख-810 हेक्टेयर

2017-11.61 लाख-1055.45 हेक्टेयर

2018-15.38 लाख-1400 हेक्टेयर

2019-23.23.25 लाख-2113.63 हेक्टेयर

2020-19.38 लाख-1761.81 हेक्टेयर

2021-26.05लाख-2368.18हेक्टेयर( प्रस्तावित लक्ष्य)

सिर्फ लाखों पौधे रोपा जाना ही पर्याप्त नहीं है। हर व्यक्ति एक पौधा रोपने की प्रतिवर्ष जिम्मेदारी ले और पौधे के वृक्ष बनने तक संरक्षण करे तो किसी भी तरह की समस्या नहीं रहेगी। सिर्फ सरकारी कार्यों पर ही निर्भर रहकर भविष्य में छांव और हरियाली की आशा नहीं की जानी चाहिए।

ज्ञानेंद्र रावत, पर्यावरणविद

विभाग का पूरा प्रयास अधिक से अधिक पौधारोपण व पौधों के संरक्षण का रहता है। जन सहयोग से बल मिलता है। संसाधनों के अनुरूप पौधों का संरक्षण किया जा रहा है। इस साल जिले में 26 लाख पांच हजार से ज्यादा पौधे रोपने की तैयारी की जा चुकी है।

अखिलेश पांडे, डीएफओ, एटा


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