पुराने गढ़ पर फिर काबिज होने की बेतावी
अपने पुराने गढ़ में फिर काबिज होने की बेतावी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के भाषण में साफ नजर आई। जनसभा के दौरान उन्होंने नेताजी (मुलायम सिंह यादव) का नाम लेकर भी समीकरण साधने की कोशिश की। 50 मिनट का उनका भाषण बड़े वोट बैंक माने जाने वाले किसान और नौजवानों के इर्द-गिर्द घूमता रहा। अंत में व्यापारियों को भी जीएसटी और नोटबंदी की पीड़ा का अहसास कराया।
एटा, जासं। अपने पुराने गढ़ में फिर काबिज होने की बेतावी पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के भाषण में साफ नजर आई। जनसभा के दौरान उन्होंने नेताजी (मुलायम सिंह यादव) का नाम लेकर भी समीकरण साधने की कोशिश की। 50 मिनट का उनका भाषण बड़े वोट बैंक माने जाने वाले किसान और नौजवानों के इर्द-गिर्द घूमता रहा। अंत में व्यापारियों को भी जीएसटी और नोटबंदी की पीड़ा का अहसास कराया।
पूर्व में एटा-कासगंज सपा का गढ़ रहा है। सांसद से लेकर अधिकांश विधायक सपा के रह चुके हैं। यादव और मुस्लिम वोट की केमिस्ट्री पार्टी का विजय मंत्र रही। लेकिन पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में ये जातीय मिथक टूट गए और इस गढ़ पर केसरिया रंग चढ़ गया। वर्ष 1999 और 2004 में यह संसदीय सीट सपा के खाते में रही थी। जबकि 2009 में पार्टी ने निर्दलीय प्रत्याशी कल्याण सिंह को समर्थन दिया और उनकी आसान जीत हुई। लेकिन 2014 के लोस चुनाव में तस्वीर पूरी तरह बदल गई। एटा-कासगंज के विधानसभा चुनाव की बात करें तो 2002 में छह, 2007 में दो और 2012 में 6 सीटें मिलीं। 2017 में सभी सीटों से सपा का सफाया हो गया। ऐसे में यह चुनाव सपा के लिए साख बचाने की चुनौती है। सपा मुखिया भी यह बात अच्छी तरह जानते हैं। इसलिए अपने चुनावी भाषण में साफ कहा कि पुरानी गलतियां भूल जाओ। यह चुनाव ऐतिहासिक है। नया देश, नई सरकार और नया प्रधानमंत्री बनाने का मौका है। नेताजी का नाम लेकर कहा कि मैनपुरी चुनाव में उनकी जीत देश की सबसे बड़ी जीत में से होगी। उनका यहां से पुराना नाता रहा है। आप लोगों को भी सपा प्रत्याशी और नेताजी को जिताना है। भाजपा पर प्रहार करते हुए कहा कि इस सरकार ने समाजवादी पेंशन छीन ली। फसल का सही दाम मांगने वाले किसानों पर लाठियां बरसाई और मुकदमे दर्ज कराए। शिक्षामित्रों को भी लुभाया
मंच के पीछे शिक्षामित्र पहुंचने की खबर लगी तो भाषण के बीच से उन्होंने पुरानी बातें बताना शुरू कर दीं। कहा कि हमने शिक्षामित्रों का समायोजन किया। उनके हित में बहुत कुछ किया। लेकिन वे 2017 चुनाव में गुमराह हो गए। भाजपा सरकार में उन्हें लाठियां मिलीं। हमारी सरकार आएगी तो अलग से नौकरी निकालेंगे। फफक पड़े देवेंद्र सिंह
मंच से अपने लिए वोट मांगने के दौरान गठबंधन प्रत्याशी देवेंद्र सिंह यादव फफक पड़े। इस चुनाव को अपना आखिरी चुनाव बताते हुए लोगों से भावनात्मक अपील की। फर्रुखाबाद के प्रत्याशी मनोज अग्रवाल ने भी वोट मांगे।