नमो दैव्ये महा दैव्ये: एटा की बेटी ने दक्षिण में बजबाया अपनी मेधा का डंका
एटा जासं। जब अपने देश में रहकर पढ़ाई की तो हम क्यों न अपने देश की ही सेवा करें। यह सोच अपने अंदर प्रतिभा की धनी एक बेटी ने पाली तो उसकी मेधा का डंका बज उठा। दक्षिण भारत में लोगों की मेधा अपने आप में सर्वोत्तम मानी जाती है। यहां उच्च शिक्षित वर्ग और शिक्षित समाज के मध्य अपनी पहचान बनाना आसान नहीं। इसके बावजूद जिले की बेटी ने दक्षिण भारत में तमिलनाडु की विलोर यूनीवर्सिटी में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में प्रथम रैंक पाकर उत्तर भारत की मेधा का लोहा मनवा दिया। इंजीनियर महिमा तोमर जिले की ऐसी प्रतिभा हैं जिन्होंने कि इस कामयाबी से पहले चाइना की बड़ी कंपनी का ऑफर भी देश सेवा की चाहत में ठुकरा दिया।
एटा, जासं। जब अपने देश में रहकर पढ़ाई की तो हम क्यों न अपने देश की ही सेवा करें। यह सोच अपने अंदर प्रतिभा की धनी एक बेटी ने पाली तो उसकी मेधा का डंका बज उठा। दक्षिण भारत में लोगों की मेधा अपने आप में सर्वोत्तम मानी जाती है। यहां उच्च शिक्षित वर्ग और शिक्षित समाज के मध्य अपनी पहचान बनाना आसान नहीं। इसके बावजूद जिले की बेटी ने दक्षिण भारत में तमिलनाडु की विलोर यूनीवर्सिटी में टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में प्रथम रैंक पाकर उत्तर भारत की मेधा का लोहा मनवा दिया। इंजीनियर महिमा तोमर जिले की ऐसी प्रतिभा हैं, जिन्होंने कि इस कामयाबी से पहले चाइना की बड़ी कंपनी का ऑफर भी देश सेवा की चाहत में ठुकरा दिया।
शहर के घिलौआ रोड निवासी कृषि विभाग में कार्यरत सुधीर तोमर की इकलौती पुत्री महिमा शुरू से ही पढ़ाई-लिखाई में मेधावी रही हैं। हाईस्कूल की शिक्षा जिले में ही पाई, लेकिन इसके बाद उन्होंने इंटरमीडिएट छिदवाड़ा मध्यप्रदेश में करते हुए 2013 में सीबीएसई बोर्ड रीजन टॉप किया। तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उनकी हौसला आफजाई कर 25 हजार का पुरस्कार भी दिया। इसके बाद उन्होंने राजस्थान के सीकर जिला स्थित लक्ष्मणगढ़ मोदी यूनीवर्सिटी से बीटेक किया। इंजीनियर बनते ही उनकी प्रतिभा को देख शंघाई जीयाओ टंग यूनीवर्सिटी चाइना ने बड़ा पैकेज देते हुए उनके यहां आने का आमंत्रण दिया। महिमा की सोच शुरू से ही बेहतर इंजीनियर बनकर देश सेवा की थी। इसलिए प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
एमटेक के लिए उनका पहले प्रयास में ही विलोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी तमिलनाडु में सेंसर सिस्टम टेक्नोलॉजी में प्रवेश हुआ। यह वह यूनीवर्सिटी थी, जहां उत्तर भारत के लोगों को मेधा के मामले में काफी निम्न माना जाता था। इसके बावजूद उन्होंने 1500 विद्यार्थियों में प्रथम रैंक पाकर प्रदेश को ही नहीं, बल्कि जनपद एटा की पहचान बनाई। वह अभी सेंसर (संवेदक) टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आगे भी अनुसंधान कर देश हित में कुछ नया करने की ललक लिए हैं। उनकी चाहत है कि वह अपने अनुसंधान के जरिए टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर प्रथम रैंक पा सकें। वह कहती हैं कि बालिकाएं उत्साह के साथ मेहनत कर आगे बढ़े।