माह-ए-रमजान, जिसने जकात नहीं किया वह दोजख का भागीदार
एटा जासं। रमजान में जकात न करने वाले दोजख के भागीदार होते हैं। कुरान में जकात का महत्व बेहद विस्तार से बताया गया है। इबादतगाहों में दी गई तकरीर में मौलानाओं ने इसे अपने ही अंदाज में समझाया। रमजान को लेकर रोजेदार बेहद उत्साहित हैं। इफ्तार के कार्यक्रम भी आयोजित होने लगे हैं लेकिन अभी बड़े कार्यक्रमों से दूरी बनी हुई है।
एटा, जासं। रमजान में जकात न करने वाले दोजख के भागीदार होते हैं। कुरान में जकात का महत्व बेहद विस्तार से बताया गया है। इबादतगाहों में दी गई तकरीर में मौलानाओं ने इसे अपने ही अंदाज में समझाया। रमजान को लेकर रोजेदार बेहद उत्साहित हैं। इफ्तार के कार्यक्रम भी आयोजित होने लगे हैं, लेकिन अभी बड़े कार्यक्रमों से दूरी बनी हुई है।
भीषण गर्मी और तपिश रमजान के प्रति उत्साह कम नहीं कर पा रही, बच्चे भी रोजा रख रहे हैं। इन दिनों सहरी और इफ्तार के लिए लोग खरीदारी भी खूब कर रहे हैं। बाजारों में खानपान की दुकानें सजी हुईं हैं। इस बीच मौलाना नूर आलम ने अपनी तकरीर में कहा कि रोजा हर मुस्लिम पर फर्ज है। रमजान के दिनों में जो रोजा नहीं रखता है वह दोजख का भागीदार होता है। इसलिए अपना फर्ज जरूर निभाना चाहिए। कुरान की एक-एक आयत का अर्थ लोगों को समझना चाहिए। रोजा हमारे जीवन में नेकी लाता है और हमें फर्ज अदा करने का हुक्म भी देता है, जिसकी तामील करना बहुत जरूरी है। विज्ञान भी करता रोजे को सलाम
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इस्लाम में रमजान के महीने में सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिनभर रोजे रखे जाते हैं। रोजों का वैज्ञानिक महत्व भी है। जिला अस्पताल के चिकित्सक डॉ. एनएस तोमर ने बताया कि निश्चित अवधि तक भोजन नहीं करने से शरीर स्वस्थ होता है। साथ ही त्याग से पीड़ा का अनुभव होता है, जिससे मन भी शुद्ध होता है। इस उपवास को आत्मसंयम और आत्म नियंत्रण विकसित करने का माध्यम माना जाता है, जिससे आत्मशक्ति और इच्छा शक्ति सुदृढ़ होती है। ब्लड शुगर और वजन का स्तर घट जाता है। शोध में पाया गया है कि 24 घटे के उपवास से बैड कोलेस्ट्रॉल 14 फीसद घटता है और गुड कोलेस्ट्रॉल 6 फीसद बढ़ जाता है। उपवास के समय भूख के कारण शरीर में खिचाव पैदा होता है। बदले में शरीर का बैड कोलेस्ट्राल घटता है। रोजेदार बोले
अल्लाह ने अपनी किताब में फरमाया है, उसके नेक बंदे जितना हो सके अपनी इच्छा पर नियंत्रण रखें।
- खालिक अहमद इंसान फर्ज की बातों को मान ले तो इस दुनिया में कोई भी गरीब और बेसहारा नहीं रहेगा और सब तरफ अमन और सुकून रहेगा।
- मोहम्मद रियाज रमजान के महीने में आप कितना संयम बरत सकते हैं, इस बात की परीक्षा भी होती है। तमाम बुराइयों से दूर रहना चाहिए।
- जावेद रोजेदारों को संयम बरतना बहुत जरूरी है। अपनी बोली पर लगाम रखें, रमजान के दिनों में किसी से अपशब्द न कहें।
- अमान उल्ला खान