दस साल से 'कस्टडी' में हैं गणपति बप्पा
जागरण संवाददाता, मैनपुरी : इंसान की प्रतिष्ठा की लड़ाई में गणपत बप्पा पिछले दस वर्षो से पुि
जागरण संवाददाता, मैनपुरी : इंसान की प्रतिष्ठा की लड़ाई में गणपत बप्पा पिछले दस वर्षो से पुलिस कस्टडी में बने हुए हैं। मंदिर पर मालिकाना हक को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई के कारण उनकी मूर्ति पुलिस के मालखाने में कैद है। ये मूर्ति चोरी के बाद बरामद हुई थी।
कस्बा कुरावली के मुहल्ला कानूनगोयान में करीब डेढ़ सौ वर्ष पुराना भगवान गणेश का मंदिर है। इसमें तीन फीट ऊंची एक कुंतल से अधिक वजनी गणेश मूर्ति थी। ये मूर्ति कीमती संगेमूसा काले पत्थर की है। 23 फरवरी 2006 की रात ये मूर्ति चोरी हो गई थी। पुलिस ने 28 जनवरी 2007 को चोरों को दबोच इनकी निशानदेही पर एक खेत में दबी ये मूर्ति भी बरामद कर ली थी। ये मूर्ति थाना कुरावली के मालखाने में जमा कर दी गई। तब से ये मूर्ति मालखाने में ही रखी हुई है।
कस्बा के लोग भी कई बार मंदिर पर स्वामित्व पर दावा करने वालों तथा पुलिस के अधिकारियों से मूर्ति को मंदिर में स्थापित कराने का अनुरोध कर चुके हैं। वर्तमान में मंदिर पर मालिकाना हक को लेकर कुरावली निवासी सुरेंद्र तिवारी के परिजन पप्पू और स्थानीय निवासी हरेंद्र दत्त मिश्रा के परिजन राहुल-विजनेश के बीच कानूनी लड़ाई चल रही है। अदालत में मामला विचाराधीन होने के कारण मूर्ति पुलिस कस्टडी में ही बनी हुई है। इंस्पेक्टर कुरावली बृजवीर ¨सह कहते हैं कि मंदिर स्वामित्व को लेकर विवाद होने के कारण कोई भी पक्ष मूर्ति को स्थापित कराने के लिए आगे नहीं आ रहा है।
चहुंओर गणेश उत्सव की धूम, मंदिर वीरान
कुरावली निवासी 80 वर्षीय पं. गजानन बताते हैं कि चहुंओर गणेश उत्सव की धूम है। लेकिन यहां सन्नाटा पसरा है। इस मंदिर में उन्होंने लगातार 60 साल पूजा अर्चना की है। कहते हैं कि पुलिस को चाहिए कि मूर्ति उन जैसे गणेश भक्तों को सौंप दे। गणेश भक्त विधिविधान से पूजा अर्चना कर मूर्ति को फिर से मंदिर में स्थापित करा देंगे। मूर्ति बगैर मंदिर अब सन्नाटा पसरा हुआ है।
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ये है मंदिर का इतिहास
बुजुर्गों के अनुसार, कस्बा कानूनगोयान निवासी पं. भगवती प्रसाद तिवारी 1857 में ग्वालियर एस्टेट में का¨रदा थे। स्वतंत्रता आंदोलन में ग्वालियर की सेना ने अंग्रेजों पर हमला बोल दिया था। इसी दौरान भगवती प्रसाद तिवारी पर एक अंग्रेज अधिकारी को बचाने का आरोप लगा। ग्वालियर की सेना ने भगवती प्रसाद की तलाश शुरू कर दी। वे जान बचाकर वहां से भाग निकले। उन्हें अंग्रेजी, हिन्दी तथा फारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था। बताते हैं कि महाराज डूंगरपुर को इन भाषाओं का ज्ञान रखने वाले का¨रदा की आवश्यकता थी। भगवती प्रसाद तिवारी डूंगरपुर रियासत में का¨रदा की नौकरी करने लगे। ग्वालियर के सैनिकों से जान बच जाने तथा डूंगरपुर एस्टेट में नौकरी मिल जाने पर भगवती प्रसाद तिवारी ने गणेश मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर की देखभाल के लिए उनकी पत्नी मखानी देवी मंदिर परिसर में ही रहती थीं। उनके कोई संतान नहीं थी। भगवती प्रसाद तिवारी तथा मखानी देवी की मौत के बाद भगवती प्रसाद तिवारी के साले उल्फत राव निवासी पटियाली मंदिर की देखभाल करने लगे। उनके भी कोई संतान नहीं थी। उनके बाद उनके भाई बेंचेलाल तथा बेंचेलाल की पत्नी जलदेवी ने मंदिर की देखभाल की। उन दोनों के निधन के बाद कुछ अन्य रिश्तेदार मंदिर की देखभाल करने लगे। मंदिर के नाम 13 बीघा जमीन है, जिसमें आठ बीघा आम का बाग है।