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विश्वबैंक पोषित ऊसर सुधार निगम पर ताले: फोटो

एटा जासं। ऊसर सुधार निगम की कभी किसानों में खास पहचान थी। कार्यालय भवन में किसानों का मेला लगा रहता था। मगर वर्तमान में इस विभाग पर ताले लटके हैं। चारों ओर सन्नाटे का आलम है। कार्यालय सहायक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के अतिरिक्त न तो यहां कोई कर्मचारी आता है और न ही किसान यहां का रुख करते हैं।

By JagranEdited By: Published: Sun, 07 Jul 2019 11:10 PM (IST)Updated: Mon, 08 Jul 2019 06:27 AM (IST)
विश्वबैंक पोषित ऊसर सुधार निगम पर ताले: फोटो
विश्वबैंक पोषित ऊसर सुधार निगम पर ताले: फोटो

एटा, जासं। ऊसर सुधार निगम की कभी किसानों में खास पहचान थी। कार्यालय भवन में किसानों का मेला लगा रहता था। मगर वर्तमान में इस विभाग पर ताले लटके हैं। चारों ओर सन्नाटे का आलम है। कार्यालय सहायक और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के अतिरिक्त न तो यहां कोई कर्मचारी आता है और न ही किसान यहां का रुख करते हैं।

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बजट के अभाव में किसानों की बंजर और ऊसर भूमि का उपचार कर उसे उपजाऊ बनाने वाले इस विभाग में अब न तो किसानों की कोई योजनाएं हैं और न कोई कार्यक्रम। 6 माह पूर्व दिसंबर से सभी योजनाएं बंद पड़ीं हैं। परियोजना प्रबंधक रामेश्वर दयाल के अतिरिक्त एक लेखालिपिक और एक चतुर्थ श्रेणी कर्मी के अलावा करीब 55 कर्मचारियों का स्टाफ विभाग से बाहर हो चुका है। ग्रामीण स्तर पर जो महिला स्वयं सहायता समूह बनाकर दस-दस महिलाओं की टोलियां बनाई गईं थीं, वह भी लापता हो चुकीं हैं। क्या कहते हैं कर्मी

- बंजर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए प्रथम चरण में वर्ष 1993 से ऊसर सुधार प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई। द्वितीय फेस 1999 से 2007 तक चला। इसके बाद तृतीय चरण 2010 से 30 दिसंबर 2018 तक पूरा हो गया। तभी से निगम के दफ्तर पर ताले लटके हैं। संतोष कुमार, कार्यालय सहायक

- कर्मचारियों की निकासी से उनके भविष्य पर संकट गहरा गया है। वे इस उम्र में नौकरी लायक भी नहीं रह गए हैं। सरकार ने उनके साथ नाइंसाफी की है। मान सिंह, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी


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