बंदिशों पर भारी मनमानी, बेखौफ जलाई जा रही पराली
किसानों को खूब समझाया और पराली जलाने से होने वाले नुकसानों से भी
एटा, जागरण संवाददाता: किसानों को खूब समझाया और पराली जलाने से होने वाले नुकसानों से भी वाकिफ कराया जाता रहा। इसके बावजूद पराली जलाने को लेकर बंदिशों का भी भय दिखाया गया, लेकिन जिले में हाल यह है कि ज्यों-ज्यों धान के खेत खाली हो रहे हैं, वहां बेखौफ होकर पराली जलाई जा रही है। शासन का प्रतिबंध जल रही पराली के साथ धुआं हो रहा है, लेकिन जिम्मेदार हैं कि उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा। पराली के प्रदूषण पर सरकार ही नहीं न्यायालय तक गंभीर है, लेकिन यहां किसी जिम्मेदार को हालात ही नहीं दिख रहे।
अक्टूबर माह के शुरूआत से ही पराली जलाने के मामले में किसानों को जागरूक करने और फिर पर्यावरण प्रदूषण बढ़ने की स्थिति से नुकसान को लेकर चेताया गया। प्रशासन ने पराली जलाने वालों पर कानूनी कार्रवाई और जुर्माना तक करने की बात कही। अब हाल यह है कि जिस मार्ग पर ही नजर दौड़ाई जाए, वहीं खेतों में जल रही पराली और धुआं से प्रदूषित होते वातावरण का नजारा देखा जा सकता है। आंकलन तौर पर हाल यह है कि 60 फीसद से ज्यादा किसान धान की पराली को खेतों में ही जला रहे हैं। हालांकि शुरूआत में प्रशासन का डर किसानों में भी रहा, लेकिन जब कुछ किसानों ने पराली जलाना शुरू किया तो यह सिलसिला भी तक जारी बना हुआ है। कुछ किसान तो ऐसे हैं, पहले पराली जला रहे हैं और फिर उसे खेतों में ही जोत रहे हैं। जबकि कृषि वैज्ञानिक जलाने के बजाय उसे खेतों में ही जोतने को हितकर बताते हैं।
यह तो रहा बेखौफ पराली जलाने का हाल। दूसरी ओर जिम्मेदारों का हाल जानें तो उन्हें ऐसे हालात से कोई लेनादेना नहीं है। पिछले साल किसानों को चिन्हित फिर भी कराया गया। इस साल तो ऐसा भी नहीं किया गया। बंदिशों को धता बता रहे अब तक किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध जिले में न कार्रवाई हुई और न ही जुर्माना। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह
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मृदा विशेषज्ञ डा. वीरेंद्र सिंह बताते हैं कि किसान खेत में ही कतई पराली न जलाएं। इससे हर स्तर पर नुकसान है। कटाई के बाद जो पराली खेत में है, उसे जोतकर मिट्टी में मिला दें और सिचाई कर दें। यही पराली खाद का काम करेगी। पराली जलाने से कार्बन जीवांश और किसान मित्र मिट्टी से कम होंगे।