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डकार गए अनुदान, जैविक इकाइयों का अता-पता नहीं

एटा जासं। मंशा तो यह थी कि ज्यादा से ज्यादा किसान जैविक खेती से जुड़ सकें और लघु वर्मी कंपोस्ट इकाइयों से रोजगार सृजन भी हो सके। इस मंशा की पूर्ति के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर जैविक उर्वरक उत्पादन की इकाई स्थापना का ऑफर किसानों को मिला। जिले में 508 इकाइयों के लिए लाभार्थियों ने अनुदान तो पा लिया लेकिन मौके पर आधी भी इकाइयां संचालित नहीं हैं। लाभार्थी अनुदान डकार गए और फर्जी तौर पर प्रदर्शित की गई वर्मी कंपोस्ट इकाइयों का कोई अता-पता नहीं। इतना सबकुछ होने के बाद भी जिम्मेदार विभाग आंखें मूंदे बैठा है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 29 Jul 2019 11:22 PM (IST)Updated: Wed, 31 Jul 2019 06:22 AM (IST)
डकार गए अनुदान, जैविक इकाइयों का अता-पता नहीं
डकार गए अनुदान, जैविक इकाइयों का अता-पता नहीं

एटा, जासं। मंशा तो यह थी कि ज्यादा से ज्यादा किसान जैविक खेती से जुड़ सकें और लघु वर्मी कंपोस्ट इकाइयों से रोजगार सृजन भी हो सके। इस मंशा की पूर्ति के लिए ग्राम पंचायत स्तर पर जैविक उर्वरक उत्पादन की इकाई स्थापना का ऑफर किसानों को मिला। जिले में 508 इकाइयों के लिए लाभार्थियों ने अनुदान तो पा लिया, लेकिन मौके पर आधी भी इकाइयां संचालित नहीं हैं। लाभार्थी अनुदान डकार गए और फर्जी तौर पर प्रदर्शित की गई वर्मी कंपोस्ट इकाइयों का कोई अता-पता नहीं। इतना सबकुछ होने के बाद भी जिम्मेदार विभाग आंखें मूंदे बैठा है।

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कृषि विभाग की प्रसार योजनाओं के अंतर्गत जागरूक किसानों को लघु वर्मी कंपोस्ट इकाई स्थापित करनी थी। इसके लिए चैंबर बनाकर गोबर की व्यवस्था प्रदर्शित करते ही विभाग प्रत्येक इकाई को अनुदान जारी कर देता। पिछले वित्तीय वर्ष में जहां जनवरी तक सिर्फ 125 इकाइयों को ही अनुदान दिया जा सका, लेकिन इसके बाद वित्तीय वर्ष समाप्ति का समय आया तो लक्ष्यपूर्ति व अनुदान बजट वापस न हो इस आपाधापी में अपात्रों को भी अनुदान दिया जाता रहा। हालांकि जैथरा, निधौली, शीतलपुर, ब्लॉकों में कुछ लघु इकाइयां बेहतर कार्य कर रही हैं, लेकिन सकीट, जलेसर, अलीगंज ब्लॉकों में अनुदानित वर्मी कंपोस्ट इकाइयों की स्थापना के बाद लाभार्थियों द्वारा केंचुए तक नहीं डाले गए हैं।

हालांकि जो इकाइयां संचालित हैं, उन्होंने जैविक खेती भी शुरू की है। लेकिन अनुदान पाने के बाद भी कुछ महीनों बाद जिन इकाइयों का अता-पता ही नहीं है, उनको लेकर विभाग निष्क्रिय बना हुआ है। इसके पीछे विभाग की मिली भगत और अनुदान के बंदरबांट की स्थितियों से इंकार नहीं किया जा सकता। केंचुआ खरीद आदि के भी फर्जी बाउचर लाभार्थियों ने बनवाकर अनुदान पाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उधर उपनिदेशक कृषि प्रसार विजय शंकर का कहना है कि विभागीय कर्मियों से बंद हो चुकी इकाइयों का चिह्नांकन कराया जाएगा। यदि खामियां मिलीं तो कार्रवाई की जाएगी।


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