वित्तीय वर्ष समाप्त अब बस चुनाव ही चुनाव
सरकारी महकमों में भले ही अधिकारी-कर्मचारियों के सिर से वित्तीय वर्ष का बोझ उतर गया हो लेकिन चुनावी बोझ सिर पर है। वित्तीय वर्ष समाप्त होते ही सरकारी कार्यालयों का नजारा बदलता दिख रहा है। वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले विभागीय कामकाज के अलावा चुनावी कार्यो के कारण दोहरा काम था लेकिन अब कर्मचारियों के चुनाव में व्यवस्तता के चलते कार्यालय सूने दिखने लगे हैं।
एटा, जासं। सरकारी महकमों में भले ही अधिकारी-कर्मचारियों के सिर से वित्तीय वर्ष का बोझ उतर गया हो, लेकिन चुनावी बोझ सिर पर है। वित्तीय वर्ष समाप्त होते ही सरकारी कार्यालयों का नजारा बदलता दिख रहा है। वित्तीय वर्ष की समाप्ति से पहले विभागीय कामकाज के अलावा चुनावी कार्यो के कारण दोहरा काम था, लेकिन अब कर्मचारियों के चुनाव में व्यवस्तता के चलते कार्यालय सूने दिखने लगे हैं।
31 मार्च से पहले यह स्थिति थी कि विभागाध्यक्ष अधीनस्थ कर्मचारियों के साथ जहां वित्तीय वर्ष संबंधी कार्यो को अंजाम दे रहे थे। वहीं दूसरी ओर चुनावी प्रशिक्षण और अन्य जिम्मेदारियां भी निभानी पड़ रही थीं। वित्तीय वर्ष के अंतिम दिन तो विभागों में देर रात तक काम चला। अब वित्तीय वर्ष के कार्यो से फुर्सत मिल चुकी है। खुमारी भी उतार ली, लेकिन अब चुनावी जिम्मेदारियों से बचने का कोई बहाना भी नहीं रहा। चुनाव के लिए जिले के ज्यादातर विभागाध्यक्षों को कोई न कोई जिम्मेदारी पहले ही मिली हुई है। किसी के पास मतदान सामग्री, साउंड, मतदाता सूची, ड्यूटी वितरण जैसी तमाम जिम्मेदारियां भी हैं। कर्मचारी चुनाव ड्यूटी तो करेंगे ही, लेकिन विभागाध्यक्षों ने वित्तीय वर्ष निपटते ही उन्हें भी सौंपी गई जिम्मेदारियों को पूरा करने में अपने साथ जुटा लिया है। कोई सेक्टर मजिस्ट्रेट है तो कोई अलग-अलग कार्यों का प्रभारी। 18 अप्रैल का चुनाव भी नजदीक है। ऐसे में सरकारी महकमे पूरी तरह से चुनाव में व्यस्त हैं। फरियादियों को भी मालूम है इसलिए वह भी दिखाई नहीं दे रहे। खास बात तो यह है कि 4 अप्रैल से फिर द्वितीय मतदान कार्मिक प्रशिक्षण शुरू हो जाएगा।