रमजान में पूरे माह बरसती है रहमत
एटा: माहे रमजान में पूरे माह खुदा की रहमत बरसती है। रोजेदारों के लिए यह काफी महत्वपूर्ण महीना है।
जागरण संवाददाता, एटा: माहे रमजान में पूरे माह खुदा की रहमत बरसती है। रोजेदारों के लिए यह महीना बेहद पाक है। रोजे के दिनों में गुनाह से तौबा करना चाहिए। खुदा एक नेकी का कई गुना ज्यादा सबाब देता है। रोजेदार अतीकुल रहमान एडवाकेट कहते हैं कि यह बरकतों का महीना है।
उन्होंने कहा कि रोजा रखने से दिल को सुकून मिलता है। रमजान माह बरकतों का महीना है जिसमें खुदा रहमत बरसाता है, इस माह का हमें बड़ी ही बे सब्री से इंतजार रहता है। रोजा के कई रुप हैं जैसे आंख का रोजा, कान का रोजा, जुबां का रोजा हम सभी रोजे के दिनों में नेक काम करने चाहिए अपने गंदे ख्यालात को निकाल देना चाहिए। अल्लाहताला ने रमजान के दिनों में तीस रोजे फर्ज किए हैं। हर रोज कोई न कोई संकल्प लेकर रोजा रखना चाहिए। अल्लाह नेकी के बदले बरकत और अच्छा सबब देगा। रोजे के दिनों में खुदा हमें नैमतों से मालामाल कर देता है। एक रोजे के बदले 70 नेकी बख्शता है, यही वजह है कि रोजा एक फर्ज का नाम है,इसे जरूर रखना चाहिए। रो•ो को इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक माना गया है। इस महीने मुसलमान तकवा हासिल करने के लिए रो•ा रखते हैं। तकवा का अर्थ है अल्लाह के नापसंद काम न कर उनकी पसंद के कामों को करना। उन्होंने कहा कि आसान शब्दों में कहा जाए तो यह महीना मुसलमानों के लिए सबसे खास होता है। रम•ान के महीने को तीन भागों में बांटा जाता है। 10 दिन के पहले भाग को रहमतों का दौर बताया गया है। 10 दिन के दूसरे भाग को माफी का दौर कहा जाता है और 10 दिन के आखिरी हिस्से को जहन्नुम से बचाने का दौर पुकारा जाता है । उन्होंने कहा जकात और फितरे की रकम बडी मात्रा में होती है, इस रकम से ऐसे मुफलिसों को इमदाद दी जाती है, जो मजलूह और बेसहारा होते हैं। गरीब हो या बेसहारा मकसद एक ही होता है कि कोई रमजान खुशियों से महरूम न रहे। जकात और फितरा जिसको दिया जाता है, उसकी भनक पड़ोसियों को भी नहीं लगने दी जाती।