Move to Jagran APP

Etah: ताल-तलैया की बाध्यता फेल, खेत-खेत बिछी सिंघाड़े की बेल, परंपरागत खेती करने वाले किसानों के लिए नई राह

खेत-खेत में बिछी बेल यहां के सिंघाड़े की पैदावार की साक्षी है। सिंघाड़े से भरे बोरों को लादकर हर रोज यहां से रवाना होती गाड़ियां दूसरे राज्यों की मंडियों में मिठास घोल रही है। परंपरागत फसल चक्र अपना रहे किसानों के लिए ये पैदावार नई राह दिखा रही है।

By Anil Kumar GuptaEdited By: Shivam YadavPublished: Fri, 11 Nov 2022 11:22 PM (IST)Updated: Sat, 12 Nov 2022 06:25 AM (IST)
Etah: ताल-तलैया की बाध्यता फेल, खेत-खेत बिछी सिंघाड़े की बेल, परंपरागत खेती करने वाले किसानों के लिए नई राह
खेत-खेत में बिछी बेल यहां के सिंघाड़े की पैदावार की साक्षी है।

एटा, जागरण संवाददाता। वर्षा के पानी से लबालब ताल-तलैया में सिंघाड़े की बेल आम बात है लेकिन जलेसर और अवागढ़ क्षेत्र में किसानों ने सिंघाड़ा को एक फसल का रूप दे दिया है। खेत-खेत में बिछी बेल यहां के सिंघाड़े की पैदावार की साक्षी है। सिंघाड़े से भरे बोरों को लादकर हर रोज यहां से रवाना होती गाड़ियां दूसरे राज्यों की मंडियों में मिठास घोल रही है। परंपरागत फसल चक्र अपना रहे किसानों के लिए ये पैदावार नई राह दिखा रही है।

loksabha election banner

जलेसर और अवागढ़ क्षेत्र के खेतों की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां पर वर्षा का पानी ताल-तलैया की तरह खेतों में भी महीनों भरा रहता है। डेढ़ दशक पहले तक किसान अगली फसल के लिए खेत को तैयार करने के लिए इस पानी को पंप के माध्यम से किसी बंबा या नाला आदि में बहा देते थे। 

ताल-तलैया में सिंघाड़े की बेल बिछा देते थे। यहां के सिंघाड़े की मिठास दूर-दूर तक पहुंचने लगी तो किसानों ने इसे फसल का रूप देना शुरू कर दिया। अब तो स्थिति ये है कि इस क्षेत्र में अधिकांश खेतों में सिंघाड़े की पैदावार होती है। 

यहां का सिंघाड़ा पूरे देश में जाता है

दोनों तहसील क्षेत्रों में सिंघाड़े की फसल की बात करें तो पांच दर्जन से ज्यादा गांवों में खेत-खेत बेल बिछी मिल जाएगी। दीपावली से पहले ही यहां का सिंघाड़ा दिल्ली, आगरा, जयपुर, जोधपुर, इन्दौर, चंडीगढ़, गुड़गांव, अहमदाबाद, कोटा, भोपाल, ग्वालियर आदि की मंडियों में पहुंचने लगता है। 

इस बार भी ऐसा ही दृश्य है। हर रोज ही सिंघाड़ा लादकर गाड़ियां दूसरे शहरों की ओर रवाना होती हैं। हर बार की तरह इस बार भी शुभ दीपावली पर किसानों को भारी लाभ मिला है। देवोत्थान एकादशी पर तो यहां के सिंघाड़े की व्यापक मांग रही।

सोच बदली तो मिली राह

जलेसर और अवागढ़ क्षेत्र में खेतों से वर्षा का पानी पंप आदि के जरिए निकालते थे। इसके भी कई दिनों बाद अगली फसल के लिए बोवाई कर पाते थे। अब सिंघाड़े की फसल के बाद खेत से पंप के जरिए पानी को बंबा या नाला में बहा देते हैं। इसके बाद अगली बोवाई करते हैं। सिंघाड़ा उत्पादक खेड़िया सुर्जी के किसान हरेन्द्र सिंह बताते हैं कि इस बार अच्छी पैदावार है, भाव भी अच्छा मिल रहा है।

मल्लाहों ने की शुरुआत

इस क्षेत्र में मल्लाह जाति के लोगों के पास खेत नहीं थे। वे तालाब और गड्ढों में सिंघाड़े की बेल बिछा देते थे। इस आय से भरण-पोषण करते थे। सिंघाड़े की खेती अब सीमांत किसानों की भी पसंद है। ऐसे भी किसान हैं जो 300 से 500 बीघा तक इसी फसल को कर रहे हैं।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.