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पड़ोसी जिलों से ¨सथेटिक मावा-पनीर की सप्लाई

जागरण संवाददाता, एटा: दूध ही नहीं इससे बनने वाले उत्पादों में गड़बड़झाला है, जो त्योहार के समय और बढ़ जाता है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 31 Oct 2018 11:05 PM (IST)Updated: Wed, 31 Oct 2018 11:05 PM (IST)
पड़ोसी जिलों से ¨सथेटिक  मावा-पनीर की सप्लाई
पड़ोसी जिलों से ¨सथेटिक मावा-पनीर की सप्लाई

जागरण संवाददाता, एटा: दूध ही नहीं इससे बनने वाले उत्पादों में गड़बड़झाला है, जो त्योहार के मौसम में और बढ़ जाता है। मांग बढ़ने से खासतौर से मावा और पनीर मिलावटखोरों की पसंदीदा सूची में आ जाते हैं। मिलावटी और ¨सथेटिक मावा-पनीर को बाजार में आसानी से खपा दिया जाता है। इनकी सप्लाई हाथरस, बरेली, बदायूं, मैनपुरी आदि जिलों से की जाती है। जहां से ये उत्पाद सस्ते मिल जाते हैं।

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जिले भर में सामान्य दिनों में 20 से 25 कुंतल मावा की खपत रोजाना होती है। वहीं दिवाली पर त्योहार से पहले यह मांग प्रतिदिन 50 कुंतल तक पहुंच जाती है। ऐसे में शुद्ध मावा से पूर्ति होना नामुमकिन सी बात है। यूं तो जिले के अंदर कुठिला, कुटिया, पिलुआ, शिव¨सहपुर आदि तमाम गांवों में मावा बनाया जाता है, लेकिन मांग अधिक होने पर हाथरस, अलीगढ़, मैनपुरी आदि पड़ोसी जिलों से इसकी सप्लाई मंगाई जाती है। इसमें अधिकांश मात्रा नकली और ¨सथेटिक मावा की होती है। वहीं त्योहार पर पनीर की मांग काफी बढ़ जाती है। जबकि त्योहार के मौसम में दूध की किल्लत पहले से होती है। ऐसे में पनीर बनाने में बड़े स्तर पर गड़बड़ी होती है। ¨सथेटिक पनीर की सप्लाई तो बदायूं-बरेली तक से आती है। ऐसे करें पहचान

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- नकली मावा की छोटी गोली बनाने पर फट जाती हैं।

- नकली मावा चिपचिपा और चखने पर इसका स्वाद कसैला होता है।

- मिलावटी और ¨सथेटिक पनीर खाने में रबड़ की तरह खिचता है।

- असली पनीर के मुकाबले सब्जी में मिलावटी और ¨सथेटिक पनीर बिखर जाता है। चिकित्सक की बात

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नकली और मिलावटी दूध निर्मित उत्पादों से फूड पॉयज¨नग, उल्टी-दस्त, उदर संक्रमण, बदहजमी, गैस सहित त्वचा रोग भी हो सकते हैं। लगातार सेवन से किडनी और लीवर पर बुरा असर पड़ता है।

- डॉ. एस. चंद्रा, जिला चिकित्सालय


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