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बहादुर के किस्से सुन आज भी उबाल लेता है खून

धौलेश्वर के बड़े बुजुर्ग जब युवा पीढ़ी को सुनाते हैं तो उनका खून उबाल लेने लगता है। गांव धौलेश्वर का आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान था।

By JagranEdited By: Published: Wed, 01 Aug 2018 11:13 PM (IST)Updated: Wed, 01 Aug 2018 11:13 PM (IST)
बहादुर के किस्से सुन आज भी उबाल लेता है खून
बहादुर के किस्से सुन आज भी उबाल लेता है खून

जागरण संवाददाता, एटा : आजादी की जंग का इतिहास शूरवीरों के किस्सों से भरा पड़ा है। इनमें कई ऐसे हैं जिनकी बहादुरी के चर्चे गांव धौलेश्वर के बड़े बुजुर्ग जब युवा पीढ़ी को सुनाते हैं तो उनका खून उबाल लेने लगता है। गांव धौलेश्वर का आजादी की लड़ाई में बड़ा योगदान था।

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बात सन् 1857 की है। स्वतंत्रता संग्राम शुरू हो चुका था। निधौली कलां क्षेत्र के छोटे से गांव धौलेश्वर में इस संग्राम की ऐसी अलख जगी कि गांव के कई वीर आजादी की लड़ाई लड़ने के लिए गांव के हीरा ¨सह, आशाराम ¨सह, गंगाधर ¨सह, कुंवर खुशहाल ¨सह आदि आगे आ गए थे। अंग्रेजों की सैन्य शक्ति ज्यादा थी, जबकि धौलेश्वरवासियों की सेना में गिने-चुने ही क्रांतिकारी थे। अंग्रेजों से लड़ाई लड़ते हुए इस गांव के हीरा ¨सह और बहादुर ¨सह शहीद हो गए थे। गांव के ब्रजराज ¨सह बताते हैं कि उन्होंने अपने पुरखों से किस्से सुने हैं।

आजादी की लड़ाई का शंखनाद धौलेश्वर के एक शिव मंदिर पर हुआ था। जहां क्रांतिकारियों की पहली बैठक हुई। उस वक्त कर्नल नील अंग्रेजी सेना का नेतृत्व कर रहा था। एक दिन जब क्रांतिकारी एक ही जगह पर एकत्रित थे तो मुखबिरों ने कर्नल को सूचना दे दी। कर्नल ने अपनी सेना के साथ आकर क्रांतिकारियों को घेर लिया। दोनों ओर से डटकर मुकाबला हुआ। इस दौरान क्रांतिकारी बहादुर ¨सह की गर्दन पर तलवार का प्रहार हुआ, जिससे काफी गर्दन कट गई, लेकिन फिर भी वे अपना घोड़ा दौड़ाते रहे। यह घोड़ा भी इतना स्वामी भक्त था कि वह गांव आकर ही रुका और बहादुर ¨सह वहीं गिरकर वीरगति को प्राप्त हो गए।

बताते हैं कि यहां के चौहानों को स्वतंत्रता संग्राम में अपनी सक्रिय भूमिका का भारी मूल्य चुकाना पड़ा। अंग्रेजों ने क्रांतिकारियों और उनके परिजनों का भरपूर उत्पीड़न किया। यहां के लोगों ने अपनी अंतिम सांस तक विदेशी शत्रुओं का मुकाबला किया। एक अन्य कर्नल सीटन ने उस दौरान अपनी किताब में लिखा कि मैं शत्रुओं का सफाया कर एटा जिला मुख्यालय पर आ गया हूं। यह किस्से जब आज के युवा सुनते हैं तो उनकी रग-रग में खून उबाल लेने लगता है। गांव में बुजुर्ग लोग आजादी से पूर्व की बातें लोगों को सुनाते हैं। इतिहास में यह गांव एक तरह से स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।


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