महावीर से हुआ अनुराग तो छोड़ दिया परिवार
ईश्वर से लगन की कोई उम्र नहीं होती। जिले के ही कस्बा अवागढ़ के मध्यम वर्गीय परिवार म
एटा: ईश्वर से लगन की कोई उम्र नहीं होती। जिले के ही कस्बा अवागढ़ के मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे अनुराग जैन ने सिर्फ 21 साल की उम्र में जैन ब्रह्मचारी के रूप में सत्य, अहिसा के मार्ग को अपनाया। वह तीन साल बाद ही जैन मुनि शिवदत्त सागर बन गए। इतनी कम उम्र में जैन साधु होने का गौरव जनपद एटा को ही है।
अवागढ़ के मुहल्ला बोहरान निवासी पारस जैन के घर जन्मे बड़े पुत्र अनुराग अहम निर्णय लेकर चौंकाएंगे यह बात परिवारीजनों ने भी नहीं सोची। वर्ष 2010 में उनकी उम्र 20 बसंत पार कर चुकी थी कि इसी दौरान कस्बा में उपाध्याय निर्भय सागर महाराज का प्रवास हुआ। मंदिर में उपाध्याय के प्रवचन आयोजनों से अनुराग का धर्म क्षेत्र से आकर्षण बढ़ा। लगभग दो महीने बाद ही इस युवा का ऐसा हृदय परिवर्तन हुआ कि भगवान महावीर से अनुराग उत्पन्न होकर घरवार छोड़ने का निर्णय ले लिया।
चार्तुमास में ब्रह्मचारी दीक्षा लेकर भगवान महावीर के सत्य, अहिसा के मार्ग की राह पकड़कर उपाध्याय निर्भय सागर का साथ पकड़ लिया। जिस पद तक पहुंचने में तमाम ब्रह्मचारियों को लंबा समय गुजर जाता है, लेकिन ब्रह्मचारी अनुराग ने 2011 में ही आगरा में झुल्लक दीक्षा 2012 में हस्तिनापुर में एलक दीक्षा प्राप्त कर ली। गुरु ने भी उनमें भगवान महावीर के प्रति जिस प्रीति का अनुभव किया उसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि वर्ष 2014 में ग्वालियर प्रवास के दौरान अनुराग को मुनि दीक्षा दी और एक सामान्य बालक मुनि शिवदत्त सागर महाराज बन गया।
सामान्य जीवन से जैन संत तक के जीवन का सफर तो उस बालक अनुराग ने तय कर लिया, बल्कि वह कस्बा की महान विभूति के साथ जनपद का गौरव बन गए। कुछ सालों के संत जीवन में वह उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र सहित अन्य कई प्रदेशों में जैन धर्म का प्रचार-प्रसार कर चुके हैं। परिवार को ही नहीं बल्कि जैन अनुयायियों को भी ऐसी विभूति पर नाज है। भाई के बाद बहन ने पकड़ी राह
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भाई के संत जीवन में प्रवेश के बाद बहन ने भी भगवान महावीर की राह पर बढ़ते हुए 2012 में ब्रह्मचारिणी का व्रत धारण कर लिया। वह भी जैन धर्म की प्रचार प्रसार में जुटी हैं। 25 साल पूर्व हुआ था अंकुरण
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25 साल पहले कस्बा की ही ब्रह्मचारिणी ने संत जीवन की शुरूआत की थी, जोकि आर्यिका विनीतमती माताजी के नाम से देशभर में प्रसिद्ध हुईं, जोकि 10 साल पहले समाधि ले चुकी हैं।