ज्ञान का मार्ग प्रशस्त करती है श्रीमद्भागवत कथा
कहा कि राजा उत्तानपाद की प्रिय रानी सुरुचि से उत्तम व सुनीति ध्रुव पैदा हुए। एक बार राजा उत्तानपाद अपनी प्रिय रानी सुरुचि को लेकर सिंहासन पर बैठकर अपने उत्तम पुत्र को से लाड प्यार कर रहा थे उसी समय सुनीति का पुत्र अपने पिता की गोदी में बैठने की जिद करने लगा।
देवरिया: शहर के नाथ नगर मोहल्ले में भागवत कथा के तीसरे दिवस श्रोताओं को कथा का रसपान कराते हुए कथा व्यास डा. श्रीप्रकाश मिश्र ने कहा कि कथा मनुष्य की अज्ञानता को दूर कर ज्ञान का संचार करती है। कथा मनुष्य के अंदर चल रही अनेकों शंकाओं का समाधान सन्मार्ग पर चलने के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। कथा सुनने का सौभाग्य भी सभी लोगों को नहीं मिलता। जब परमात्मा की कृपा होती है तभी कथा सुनने का सौभाग्य प्राप्त होता है।
कहा कि राजा उत्तानपाद की प्रिय रानी सुरुचि से उत्तम व सुनीति ध्रुव पैदा हुए। एक बार राजा उत्तानपाद अपनी प्रिय रानी सुरुचि को लेकर सिंहासन पर बैठकर अपने उत्तम पुत्र को से लाड प्यार कर रहा थे उसी समय सुनीति का पुत्र अपने पिता की गोदी में बैठने की जिद करने लगा। उत्तानपाद तो ध्रुव को बैठाना चाहे लेकिन सुरुचि की क्रोध भरी निगाहों को देखकर उत्तानपाद ने अपनी गोदी में नहीं बैठाया बार-बार ध्रुव के जिद करने पर सुरुचि ने कहा कि तुम यहां से भाग जाओ। ध्रुव ने कहा कि क्या मैं अपने पिता का पुत्र नहीं हूं, सुरुचि ने हाथ पकड़कर घसीटते हुए धर्मपुर महल से बाहर निकाल दिया और कहा कि तुम अप्रिय रानी सुनीति के पुत्र हो। राजा के गोद में अगर बैठने की इतनी ही लालसा है तो जंगल में जाकर भगवान की आराधना करो और जब भगवान प्रसन्न हो जाएं तो उनसे वरदान मांगना कि मुझे सुरुचि के गर्भ में पैदा करें। तब तुम राजा के गोद में बैठने का अधिकारी होगे। ध्रुव ने जंगल में जाकर नारद जी के बताए हुए मंत्रों द्वारा छह महीने में भगवान को प्रसन्न कर दर्शन प्राप्त कर लिए। ध्रुव की कथा से हमको यह ज्ञान मिलता है कि अटल निश्चय से ही परमात्मा की प्राप्ति होती है। मुख्य यजमान अवधेश दुबे, सुशीला देवी, माधुरी श्रद्धा, मधु, सरोज, दुर्गेश, विनोद मुकेश, अनिल, धर्मेंद्र सहित अनेक श्रोता उपस्थित रहे।