पिता से मिली समय के प्रति प्रतिबद्धता की सीख
मेरे स्व.पिता सुकदेव तिवारी ¨सचाई विभाग में अधीक्षण अभियंता थे। सभी बच्चों को बचपन से ही बेहतर
मेरे स्व.पिता सुकदेव तिवारी ¨सचाई विभाग में अधीक्षण अभियंता थे। सभी बच्चों को बचपन से ही बेहतर तालीम दी और संस्कार, शिष्टाचार का पाठ पढ़ाया। सबसे बड़ा उनका मानवीय गुण था कि वे बेहद संवेदनशील और समय के प्रतिबद्ध रहने वाले इंसान थे। वे हमेशा कहते थे कि जो समय को बर्बाद करता है उसे समय बर्बाद कर देता है। जीवन में समय के प्रति सदैव प्रतिबद्ध रहो। समय के प्रतिबद्धता की उनकी सीख मुझे आज भी याद है और मैंने उसे सदैव के लिए अपने जीवन में अपनाया। उनके संस्कार की ही देन है कि लोग कहते हैं जहां लक्ष्मी का वास होता है वहां सरस्वती नहीं रहती और जहां सरस्वती रहती है वहां लक्ष्मी का वास नहीं रहता है। उनके आशीर्वाद से ही आज मेरे घर में दोनों का वास है। पितृपक्ष में मैं उनको नमन करता हूं।
डा.सत्येंद्र तिवारी, न्यू कालोनी देवरिया
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पिता की सीख से मिला मुकाम मेरे पिता गिरिजा शंकर मिश्र ने मुझे बचपन से ही सदाचार व निष्ठापूर्वक कार्य करने की सीख दी। उसी का परिणाम है कि मैंने जब से होश संभाला उसी समय से मैं हर काम को मेहनत व वह ईमानदारी से करता हूं। उन्हीं की देन है कि आज मैं इस मुकाम पर हूं। मेरे पिता ने हमेशा दूसरों की मदद करने की भी सीख दी। उन्होंने हमें एक बार किसी भी विषम परिस्थिति में साहस न खोने की बात कही थी जो आज भी मुझे अच्छी तरह याद हैं। पितृपक्ष में उनको याद कर ऐसा प्रतीत होता है कि भले ही वह आज इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनका आशीर्वाद हमेशा मेरे साथ है।
-विनय कुमार मिश्रा, सोंदा, देवरिया