जनकपुर से लौटते से समय परशुराम ने सोहनाग में किया था तप
ऋषि परशुराम की तपोस्थली है सोहनाग धाम - बिहार झारखंड मप्र छत्तीसगढ़ के अलावा नेपाल से आते हैं श्रद्धालु -सोहनाग में रात्रि विश्राम किये थे ऋषि परशुरामअक्षय तृतीया के दिन लगता है मेला
देवरिया : पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में सलेमपुर तहसील के निकट सोहनाग में परशुराम धाम है। जहां ऋषि परशुराम ने जनकपुर से लौटते समय यहां विश्राम किया और उसके बाद तप साधना किया था। तभी से इस स्थान का धार्मिक व पौराणिक महत्व बढ़ गया। अक्षय तृतीया के दिन से मेला लगता है। यहां बिहार, झारखंड, मप्र, छत्तीसगढ़ के अलावा नेपाल से भी लोग आते हैं।
परशुराम धाम सोहनाग देवरिया जिला मुख्यालय से करीब 34 किमी. दूर है। मान्यता है कि कहा जाता है कि इस स्थल पर घना जंगल था। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम जब जनकपुर में भगवान रामचंद्रजी ने धनुष तोड़ा तो भगवान परशुराम जनकपुर वायु मार्ग से जनकपुर पहुंच गए। जनकपुर में लक्ष्मण-परशुराम के बीच संवाद हुआ। उसके बाद वह जनकपुर से लौटते समय सलेमपुर के निकट रास्ते में सोहनाग में जंगल को देख रात्रि विश्राम के लिए ऋषि परशुराम सोहनाग में रुक गए। जंगल व प्राकृतिक छटा को देख आकर्षित हुए। उसके बाद काफी दिनों तक सोहनाग जंगल में तप किया।
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रोगनाशी सरोवर
सोहनाग में भगवान परशुराम के मंदिर के बगल में 10 एकड़ भूमि में सरोवर है। जिसका महत्व धार्मिक है। मान्यता है कि कई सौ वर्ष पूर्व नेपाल के राजा सोहन तीर्थाटन को निकले थे। उन्होंने इसी स्थान पर विश्राम किया था। सरोवर के पानी से शरीर का स्पर्श हुआ तो उनका कुष्ठ रोग समाप्त हो गया। इसके बाद उन्होंने पोखरे की खोदाई कराई। जिसमें भगवान परशुराम, उनकी माता रेणुका, पिता जमदग्नि, भगवान विष्णु की पत्थर की मूर्ति मिली। उन्होंने मंदिर का निर्माण कराया। इस स्थान का नाम राजा सोहन के चलते सोहनाग हो गया।
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आकर्षण का केंद्र हैं मूर्तियां
खोदाई में प्राप्त भगवान परशुराम, उनकी माता रेणुका, पिता जमदग्नि, भगवान विष्णु की पत्थर की मूर्ति आकर्षण का केंद्र है। इन मूर्तियों के बारे में कहा जाता है कि यह गुप्तकालीन हैं।
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पौराणिक महत्व को देखते हुए सोहनाग धाम के विकास के लिए पर्यटन विभाग से सुंदरीकरण कराया गया है। इसके अलावा भी कार्ययोजना बनाई जा रही है, जिससे इस पौराणिक स्थल का और विकास कराया जा सके।
अमित किशोर
जिलाधिकारी, देवरिया
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