सरकार के विरोधियों को देशद्रोही कहना उचित नहीं: डा.असीम
देवरिया: संत विनोबा महाविद्यालय के सभागार में शनिवार को साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध के जन्
देवरिया: संत विनोबा महाविद्यालय के सभागार में शनिवार को साहित्यकार गजानन माधव मुक्तिबोध के जन्म शताब्दी वर्ष पर मुक्तिबोध शताब्दी स्मृति व्याख्यान माला प्रथम का आयोजन किया गया। वक्ताओं ने मुक्तिबोध के लेखन व वैचारिक संघर्ष पर विस्तार से विचार रखा।
प्राचार्य डा.असीम सत्यदेव ने कहा वर्तमान व्यवस्था के संकट व उससे उत्पन्न घटते मानव अधिकार पर ¨चता व्यक्त करते हुए इसका एकजुट होकर सामना करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आज हम खुद को सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का कहते हुए फूले नहीं समाते, लेकिन एक लोकतांत्रिक देश में सरकार के विरोधियों को देशद्रोही कहा जाना कहां तक सही व लोकतांत्रिक है? यदि शिवाजी पर किताब लिखने वाला इस सभ्य समाज का खुलासा करता है कि उनके शासन में व उनके बाद के मराठा शासकों ने गैर मराठा शासकों से बिना किसी भेदभाव के सरदेश मुखी व चौथ टैक्स वसूला तो उस किताब को जलाना व प्रतिबंधित करना कहां तक लोकतांत्रिक है? अंध विश्वास का खंडन करने वालों पर हमला करना उन्हें संस्कृति विरोधी बताना व उनकी हत्या करना कैसा लोकतांत्रिक आचरण है? उन्होंने आगे कहा कि गजानन माधव मुक्तिबोध का जन्म 1917 में हुआ था। मुक्तिबोध ने उस दौर में कहा था कि आज अभिव्यक्ति के खतरे उठाने होंगे, तोड़ने ही होंगे गढ़ और मठ सब। शायद मुक्तिबोध ने आज के हालात का अंदाजा लगा लिया था। डा.अर¨वद कुमार ने वर्तमान समय में अभिव्यक्ति के खतरे की ओर संकेत किया। डा.चतुरानन ओझा व डा. विमलेश कुमार मिश्र ने मुक्तिबोध के लेखन व वैचारिक संघर्ष के विभिन्न आयामों को प्रस्तुत किया। गोष्ठी में डा.नाजिश बानो, डा.चंद्रशेखर पांडेय, डा.मंशा देवी, डा.मनोज, डा.राजेश, डा.चंद्रप्रकाश तिवारी, डा.महेश्वर मिश्र ने भी भागीदारी की।