आजादी की पहली सुबह याद कर चमक उठी राधा मोहन की आंखें
मूलत: बिहार प्रांत के सिवान जनपद के कबीरपुर निवासी व लंबे समय से शहर के चकियवा रोड देवरिया में मकान बना कर रहने वाले 82 वर्षीय राधा मोहन वर्मा आजादी की पहली सुबह की यादों को अपने दिन में आज भी संजोये हैं।
सौरभ कुमार मिश्र, देवरिया: मूलत: बिहार प्रांत के सिवान जनपद के कबीरपुर निवासी व लंबे समय से शहर के चकियवा रोड देवरिया में मकान बना कर रहने वाले 82 वर्षीय राधा मोहन वर्मा आजादी की पहली सुबह की यादों को अपने दिन में आज भी संजोये हैं। वह आजादी की पहली सुबह को अपने जीवन का सबसे बेसकीमती और अनमोल समय मानते हैं। आजादी की पहली किरण के साथ ही लोगों की खुशियों को साझा करते उनकी आंखें भर आईं, संभलते हुए कहा कि दो दिन पहले से ही भारत के आजाद होने की चर्चा शुरू हो गई थी लेकिन 14 अगस्त 1947 की शाम को यह चर्चा काफी तेजी से हो गई कि हमारा देश आजाद हो गया है। कल 15 अगस्त को इसकी घोषणा कर दी जाएगी। लोग पूरी रात सोए नहीं सुबह का इंतजार करते रहे। जैसे ही सुबह हुई सभी लोग जिसके पास गांधी टोपी थी वह पहने और जिसके पास नहीं थी वह खरीद कर ले आये। उसे पहनने के बाद गांव में जिसके पास जो भी वाद्य यंत्र था, ढोल, झाल, मजीरा, हारमोनियम के साथ नृत्य करते हुए समूह में एक दूसरे को गले लगा कर नाचने गाने लगे। यह खुशी बांटने का सिलसिला पूरा दिन चला। इस खुशी को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता है। सुबह से लेकर रात तक भारत माता की जय का नारा गूंजता रहा।
राधामोहन का जन्म 20 जुलाई 1937 को हुआ। वह दो भाई व दो बहन थे, जिसमें 1944 में बहन कुंती व भाई रामविलास की प्लेग की चपेट में आने से मौत हो गई। वह हाईस्कूल बीएन इंटर कालेज मझौली से वर्ष 1954 में व इंटरमीडिएट 1956 में उत्तीर्ण किए। बीएचयू वाराणसी से 1958 में बीए व कोलकाता से ¨हदी से एमए करने के बाद यूपी में उन्हें बेसिक शिक्षा विभाग में अध्यापक की नौकरी मिल गई और वे देवरिया में मकान बना कर रहने लगे। आजादी के दिन गांव में धुधका, गोड़उ, फर्री नृत्य का आयोजन हुआ, जिसमें सभी लोग नाचते-गाते आजादी का जश्न मनाए। ऐसा लग रहा था कि मानों लोगों को खुशियों का जहां मिल गया है। गुलामी की जंजीर को तोड़ कर खुली हवा में लोगों ने सांस ली। इस उत्सव में समाज के हर वर्ग के लोगों ¨हदू-मुस्लिम, अमीर-गरीब सभी दिल खोलकर शामिल हुए। जश्न मनाते लोगों का वह दृश्य मुझे आज भी भूला नहीं है। गांव में बतासा व लड्डू मंगाया गया जिसे लोगों के बीच बांटा गया। घरों में अभाव के बाद भी होली के त्योहार जैसा माहौल था। घरों में पकवान बनाया गया लोग एक दूसरे के घर जाते और बतासा, मिठाई व पकवान खाते।