नारी सशक्तीकरण व सामाजिक बदलाव पर विचार-विमर्श
दैनिक जागरण की ओर से मंगलवार को पाठक पैनल का आयोजन किया गया, जिसमें नारी सशक्तीकरण, परिवार के मूल्यों व सामाजिक व्यवस्था में आ रहे बदलाव आदि विषयों पर विचार-विमर्श किया गया। हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिए गए ऐतिहासिक फैसलों पर भी चर्चा की गई। प्रबुद्धजनों ने यूरोपीय सभ्यता व संस्कृति को अपनाने पर ¨चता जाहिर करते हुए भारतीय समाज के लिए घातक बताया
देवरिया : दैनिक जागरण की ओर से मंगलवार को पाठक पैनल का आयोजन किया गया, जिसमें नारी सशक्तीकरण, परिवार के मूल्यों व सामाजिक व्यवस्था में आ रहे बदलाव आदि विषयों पर विचार-विमर्श किया गया। हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से दिए गए ऐतिहासिक फैसलों पर भी चर्चा की गई। प्रबुद्धजनों ने यूरोपीय सभ्यता व संस्कृति को अपनाने पर ¨चता जाहिर करते हुए भारतीय समाज के लिए घातक बताया।
दीवानी न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सुरेश मणि त्रिपाठी कहते हैं कि हाल में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं से जुड़ा एक फैसला सुनाया है। उस परिप्रेक्ष्य में मुझे कहना है कि नारी कभी न अबला थी न है। वह कभी शक्तिहीन नहीं थी। नारी के रूप में शक्ति की पूजा होती है। ¨हदू धर्म में विवाह संस्कार है न कि कांट्रैक्चुअल शादी। स्वामी विवेकानंद ने अमेरिका जाकर ललकारा और भारतीय संस्कृति को प्रतिस्थापित किया था। हमें पाश्चात्य सभ्यता व संस्कृति से प्रभावित नहीं होना चाहिए।
बीआरडीपीजी कालेज के पूर्व प्राचार्य डा.महेश्वर ¨सह कहते हैं कि आज शिक्षण संस्थानों में अनुशासनहीनता बढ़ती जा रही है। नैतिकता की कमी है। छोटे-बड़े का लिहाज नहीं रहा। शिष्य गुरु के रिश्ते पहले जैसे नहीं हैं। आज शिक्षण संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की जरूरत है। संस्कारयुक्त शिक्षा देने की आवश्यकता है।
संत विनोबा पीजी कालेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डा.विवेक मिश्र कहते हैं कि आज पारिवारिक मूल्य कमजोर पड़ गए हैं। संयुक्त परिवार टूटने लगे हैं। बाजारीकरण के कारण सामाजिक बदलाव के दौर से हम गुजर रहे हैं। संस्कार व अपनी संस्कृति को हमें नहीं भूलना चाहिए। इसे बनाए रखने की आवश्यकता है। धर्म, जाति, भाषा व क्षेत्रवाद की राजनीति करने के कारण हम वैचारिक रूप से सिमटते जा रहे हैं। इसके कारण राष्ट्रीयता की भावना कमजोर पड़ रही है। कवि सरोज पांडेय कहते हैं कि आज धार्मिक व सामाजिक क्षेत्र में बाहरी ताकतें दखलअंदाजी कर रही हैं। व्यवस्था पूंजी के हाथ में चला गया है। स्त्री आज ताकतवर होकर उभरी है तो उसकी बातें सुनी जा रही है। पूर्व शिक्षक रामबृक्ष प्रजापति कहते हैं कि मूर्तियों को सड़क पर रखकर आवागमन बाधित कर दिया गया है। इससे हादसे हो रहे हैं। हमें मूर्तियों की संख्या सीमित करना चाहिए। आम नागरिकों को सहुलियत का ध्यान रखना चाहिए।
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न्यायिक व्यवस्था में सुधार की जरूरत
सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश रमेंद्रनाथ राय कहते हैं कि आज न्यायिक व्यवस्था में सुधार की जरूरत है। खासतौर से जिला न्यायालयों में समस्याओं का तीन स्तर पर तत्काल समाधान होना चाहिए। प्रक्रिया को सरल बनाने, तकनीक का उपयोग कर मुकदमों की तारीख व गवाही आदि रिकार्ड करने के प्रबंध करने, जनपदीय न्यायालयों में न्यायिक अफसरों की नियुक्तियां, प्रोन्नति में ध्यान देना, समयबद्ध तरीके से सुनिश्चित करना, प्राथमिकता के साथ होना चाहिए। संविधान में संशोधन द्वारा अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का प्रावधान 25 वर्ष पूर्व किया गया। उसे लागू किया जाना चाहिए। भारतीय संविधान के आर्टिकल 32 के अंतर्गत संसद यह अधिकार जिला न्यायाधीशों को भी दे, ताकि रिट संबंधी बहुत से निर्णय इसी स्तर पर जिले में ही निपट जाए। अधिवक्ताओं द्वारा कारपोरेट तरीके से कंपनी बनाकर सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट में वकालत की जा रही है। इसे समाप्त किया जाना चाहिए। यह जनहित में ठीक नहीं है।
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