समाजवादी नेता के रूप में थी मुक्तिनाथ की पहचान
देवरिया : तीन दशक से अधिक राजनीति में ईमानदारी और सादगी की मिसाल पेश करने वाले पूर्व ि
देवरिया : तीन दशक से अधिक राजनीति में ईमानदारी और सादगी की मिसाल पेश करने वाले पूर्व विधायक मुक्तिनाथ यादव पूर्वांचल के प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे। उन्होंने समाजवाद के सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। उन्होंने वे प्रदेश की सदन में दो बार पहुंचकर गरीबों की आवाज बुलंद करते रहे। शुक्रवार की तड़के उनका पीजीआइ लखनऊ में निधन हो गया।
रुद्रपुर क्षेत्र के कन्हौली गांव में पूजन यादव के घर एक जनवरी 1950 को मुक्तिनाथ यादव का जन्म हुआ। ये तीसरे नंबर के पुत्र थे। घर की माली हालत ठीक नहीं थी। उनकी प्राथमिक शिक्षा पैतृक गांव से ग्रहण की। इसके बाद बाबा राघव दास महाविद्यालय देवरिया से स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के बाद परास्नातक व विधि की शिक्षा गोरखपुर विश्वविद्यालय से पूरी की। इसके बाद वे जनता इंटरकालेज चरगावां गोरखपुर में शिक्षक बन गए और शिक्षण कार्य करने लगे। इस दौरान उन्होंने समाज सेवा करने की मन में ठान ली और लोहिया के विचारों से प्रभावित होकर 1983 में शिक्षक की नौकरी छोड़कर राजनीतिक सफर शुरू की। उनकी दो संतान हैं, जिसमें एक पुत्र और एक पुत्री हैं। वे कहते थे कि एक साथ दो कार्य नहीं हो सकता है। उनका मिशन समाज के दलित और पिछड़ों की आवाज लखनऊ की पंचायत में उठाना था। उनकी राजनीतिक पैठ गहरी थी। इसलिए विरोधी भी घबराते थे। उन्होंने पहली बार विधानसभा क्षेत्र रुद्रपुर से 1989 में जनता दल के चुनाव चिह्न चक्र पर चुनाव लड़ा, निर्वाचित हुए और गरीबों की आवाज बुलंद की। इसके बाद मुलायम ¨सह यादव की समाजवादी पार्टी से 1993 में साइकिल से जीतकर दूसरी बार सदन में पहुंचे, जहां पिछड़ों और दलितों की आवाज को उठाते रहे। टिकट न मिलने पर 2007 में राष्ट्रीय जनता दल से चुनाव लड़े और हार गए। इसके बाद फिर से सपा में वापस लौट आए। इसके बाद अंतिम समय तक सपा से जुड़े रहे। 2017 में सपा-कांग्रेस गठबंधन के कारण यहां की सीट कांग्रेस की झोली में चली गई, जिसके चलते चुनाव नहीं लड़ सके।