मुआवजा पर फंसा पेच, सरकार ने किया किनारा
कास्तकारों ने परियोजना के औचित्य पर सवाल खड़े किए। भूमि अधिग्रहण न हो सका।
देवरिया: प्रदेश सरकार द्वारा हथुआ-भटनी रेललाइन परियोजना से किनारा कर लेने के कारण इस पर संकट का बादल खड़ा हो गया है। मुआवजा, किसानों के विरोध, परियोजना की बढ़ी लागत आदि का हवाला देते हुए रेलवे को खुद निर्णय लेने को कहा है। साफ किया है कि चूंकि परियोजना रेलवे ने शुरू किया था, इसलिए उसके औचित्य पर भी उसी को अंतिम निर्णय लेना होगा।
दरअसल 16 वर्ष पूर्व यह परियोजना शुरू हुई तो भूमि अधिग्रहण को लेकर किसानों का विरोध खड़ा हुआ। मुआवजा की बात फंसी। कास्तकारों ने परियोजना के औचित्य पर सवाल खड़े किए। भूमि अधिग्रहण न हो सका। एक बार पुन: बीते तीन फरवरी को पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी निर्माण गोरखपुर ने प्रदेश सरकार से पुनर्विचार का अनुरोध किया। तीन मार्च को लखनऊ में हुई बैठक में इस पर चर्चा हुई। जिलाधिकारी ने पूरी स्थिति से अवगत कराया। बताया कि किसान भूमि देने को तैयार नहीं हैं। कुछ किसान नए भूमि अर्जन अधिनियम के अनुसार सर्किल रेट के चार गुना प्रतिकर मांग रहे हैं। परियोजना की लागत 230.03 से बढ़कर 770 करोड़ रुपये हो गई है। छह मार्च को राजस्व अनुभाग के सचिव संजय गोयल ने पत्र लिखा और साफ-साफ कहा कि चूंकि रेलवे ने स्वत: ही परियोजना प्रारंभ की। इसलिए ऐसी परिस्थिति में अपने स्तर से परियोजना के औचित्य पर विचार कर, अंतिम निर्णय ले।
जनपद के 14 गांवों की 41.902 हेक्टेयर भूमि ली जानी है। चार अगस्त 2008 भूमि अधिग्रहण को लेकर धारा चार का प्रकाशन हुआ। किसान नहीं माने तो मुआवजा का भुगतान किए बिना 20 दिसंबर 2012 को अभिलेखीय कब्जा अर्जन निकाय को दे दिया गया। अमल दरामद नहीं हुआ। भूमि पर अभी भी कास्तकारों का कब्जा है। जिलाधिकारी अमित किशोर ने कहा है कि परियोजना व्यावहारिक नहीं है। यह परियोजना रेलवे के लिए बहुत महंगा साबित हो रहा है।