आजादी की लड़ाई में सेनानियों को सहेजने इंदूपुर आए थे बापू
देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने की लड़ाई छिड़ चुकी थी। पूरा इलाका स्वाधीनता आंदोलन की आग की लपट से तप रहा था। गोरखपुर के चौरीचौरा में थाने को आंदोलनकारियों ने फूंक दिया था।
देवरिया : देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने की लड़ाई छिड़ चुकी थी। पूरा इलाका स्वाधीनता आंदोलन की आग की लपट से तप रहा था। गोरखपुर के चौरीचौरा में थाने को आंदोलनकारियों ने फूंक दिया था। इसके बाद गौरीबाजार इलाके में भी स्वाधीनता आंदोलन की लपट पहुंच गई थी। लोग अंग्रेजों से दो-दो हाथ करने को तैयार थे।
गांधीजी को इसकी जानकारी देवरिया (उस वक्त का गोरखपुर जिला) के पथरहट निवासी व स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सूर्यनारायण सिंह उर्फ नेताजी ने दी। उन्होंने महात्मा गांधी को देवरिया आने का आग्रह किया, जिसे बापू टाल नहीं सके और 1929 में महात्मा गांधी के कदम गौरीबाजार की धरती पर पड़ा। इसका गवाह बना इंदूपुर मेला स्थल। मेला स्थल पर बापू ने न केवल लोगों को सहेजा बल्कि विदेशी सामान का बहिष्कार करने के लिए प्रेरित किया था।
गांधीजी ने लोगों से अहिसात्मक तरीके से आजादी की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए जैसे ही गांधीजी मैदान में बने चबूतरे पर चढ़े तो लोगों ने गांधीजी के जयकारे के साथ भारत माता की जय का उद्घोष किया। गांधीजी के साथ आचार्य कृपलानी, प्रयागध्वज सिंह आदि भी आए थे।
उस दौर के ज्यादातर बुजुर्ग भले ही अब जिदा नहीं हैं लेकिन जो लोग हैं उनके जेहन में बापू के आने का वर्ष अभी जिदा है। पथरहट गांव के बैजनाथ सिंह व हरखन सिंह बताते हैं कि गांधीजी जब इंदूपुर मेला स्थल पर आए थे उस वक्त मैं छोटा था। अपने पिता के साथ गांधीजी को देखने गया था। उनको देखने के लिए गांव से लोग ज्यादातर लोग पैदल ही गए थे। सेवानिवृत्त शिक्षक सुरेंद्र सिंह बताते हैं कि सेनानी प्रयागध्वज सिंह व राधाकिशुन ने मुझे बताया था कि गांधीजी चौरीचौरा कांड से काफी दुखी थे,लोगों को अहिसात्मक तरीके से आंदोलन करने के लिए सहेजने आए थे।
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पथरहट गांव में भी गए थे गांधीजी इंदूपुर की सभा के बाद गांधीजी गांव पथरहट गए, वहां करीब डेढ़ घंटे तक विश्राम किया, उसके बाद वहां से दूसरे जिले के लिए प्रस्थान कर दिए। इस दौरान ब्रिटिश हुकूमत के अधिकारी भी गांव में डेरा डाले थे।