भरतकूप में पांच दिवसीय मकर संक्रांति मेला शुरू
जागरण संवाददाता चित्रकूट मकर संक्रांति का स्नान चित्रकूट में पौराणिक भरतकूप समेत मंद
जागरण संवाददाता, चित्रकूट : मकर संक्रांति का स्नान चित्रकूट में पौराणिक भरतकूप समेत मंदाकिनी, यमुना पर शुक्रवार की भोर से ही शुरू हुआ। प्रतिवर्ष लगने वाले पांच दिवसीय भरतकूप मकर संक्रांति मेला का काफी महत्व है। कूप के पवित्र जल में स्नान से सभी तीर्थों का पुण्य मिलता है।
वैसे तो 14 जनवरी की रात 8.49 बजे सूर्य धनु से मकर राशि में प्रवेश करेंगे। सूर्य उत्तरायण होने पर मकर संक्रांति स्नान पर्व होता है जो मुहूर्त शनिवार को है, लेकिन तमाम लोग प्रतिवर्ष 14 जनवरी को भी मकर संक्रांति मनाते है उसी के अनुसार मंदाकिनी तट रामघाट, पौराणिक भरतकूप और गोस्वामी तुलसीदास की जन्मस्थली राजापुर के यमुना घाट में लोग भोर से स्नान को पहुंचने लगे हैं। कोरोना के बाद भी लोगों में त्योहार को लेकर काफी उत्साह है। जिला प्रशासन ने भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। सभी मेला स्थलों में मजिस्ट्रेट की तैनाती फोर्स के साथ की है जो लगातार भ्रमण कर मेला को सकुशल संपन्न करेंगे। भरतकूप में तो पांच दिन मेला लगता है जबकि अन्य जगह में सिर्फ एक दिन का मेला है।
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भरतकूप की यह है मान्यता
'भरतकूप अब कहिहहि लोगा, अतिपावन तीरथ जल योगा। प्रेम सनेम निमज्जत प्राणी, होईहहि विमल कर्म मन वाणी।।' रामचरित मानस के अयोध्याकांड की यह चौपाई 'भरतकूप' का महात्म बताती है कि चित्रकूट प्रभु श्रीराम वनवास काल में आए थे। तभी भरत अयोध्या की जनता के साथ भइया राम को मनाने के लिए यहां पधारे थे। साथ में राज्याभिषेक के लिए समस्त तीथरें का जल भी लाए थे। भगवान श्रीराम चौदह साल वनवास के लिए दृढ़ प्रतिज्ञ थे। अयोध्या वापस जाने और राज्याभिषेक से इन्कार करने पर भरतजी निराश हुए थे। श्रीराम के आदेश पर राज्याभिषेक को लाए सभी तीर्थों का जल और सामग्री इसी कूप में छोड़ दी थी। भगवान की खड़ाऊ लेकर लौट गए थे। तबसे इस कूप का नाम भरतकूप हो गया था।
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यहां पर लगा मेला
मंदाकिनी तट रामघाट, सूर्यकुंड, भरतकूप, वाल्मीकि आश्रम लालापुर, साईपुर. पालेश्वर नाथ पहाड़ी. मंदाकिनी-यमुना संगम स्थल कनकोटा, तुलसी जन्मस्थली राजापुर, परानू बाबा बरगढ़, शबरी जल प्रपात, मारकंडेय आश्रम।
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हिदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है साईपुर का मेला
पहाड़ी थाना के साईपुर में वलीशाह दाता की मजार पर लगने वाला मेला हिदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक है। यहां हिदू खिचड़ी, मुसलमान चादर और सिन्नी चढ़ाते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि लगभग 422 वर्ष पूर्व साईपुर के पहाड़ के उत्तर दिशा में धासा मऊ गांव था। कुछ दूर बागे नदी बहती है। गांव में एक संत पुरुष आए थे। नदी किनारे एक कुटिया बनाकर रहने लगे और लोगों की बीमारियों को दूर करते थे। उनके उपदेश से लोग प्रभावित होने लगे थे। उन्हें चमत्कारी पुरुष मानने लगे। उनकी ख्याति फैल गई। आश्रम में श्रद्धालुओं की भीड़ भी बढ़ने लगी। बताते हैं कि साईपुर पहाड़ में संत ने जिदा समाधि ली थी। उसी मजार में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति में मेला लगता है। जिसमें कई जिले से लोग पहुंचते हैं।