तपोभूमि के इतिहास पर अनदेखी का 'धूल'
जागरण संवाददाता, चित्रकूट : 84 कोस में फैले दिव्य धाम चित्रकूट में हजारों साल पुरानी संस्कृि
जागरण संवाददाता, चित्रकूट : 84 कोस में फैले दिव्य धाम चित्रकूट में हजारों साल पुरानी संस्कृतियों का इतिहास समेटे धार्मिक और पौराणिक स्थलों का स्वरूप धीरे-धीरे मिटने लगा है। सृष्टि के अनादि तीर्थ और भगवान राम की तपस्थली के तौर पर पहचान रखने वाले चित्रकूट को विश्व धरोहर घोषित करने की जरूरत है पर लगातार अनदेखी की जा रही है। हालांकि कुछ को भारतीय और उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग ने संरक्षित किया पर अभी तक 60 फीसद स्थलों की ओर किसी की निगाह नहीं पड़ी। अफसरों की मनमानी इनकी प्रामाणिकता को खत्म कर रही है।
दो प्रदेशों में खींचतान से उपेक्षित
तपोभूमि का 84 कोस परिक्षेत्र उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा के बीच फंसा है। कई पौराणिक स्थल उत्तर प्रदेश में तो कई मध्य प्रदेश की सीमा पर हैं। इससे तपोभूमि के समग्र विकास और पौराणिक स्थलों के संरक्षण पर कोई ठोस काम नहीं हो पा रहा है।
संरक्षित हैं फिर भी बदहाली का शिकार
भारतीय पुरातत्व विभाग ने गणेश बाग, कोठी तालाब, गोंड़ा मंदिर, ऋषियन आश्रम, सिमेटरी (मिशन कब्रिस्तान) कर्वी और मानिकपुर, बरहा कोटरा, टेंपल आफ मऊ, राम नगर शिव मंदिर, खोह शिव मंदिर और मड़फा का शिव मंदिर संरक्षित किए हैं। उत्तर प्रदेश पुरातत्व विभाग ने हाल में चर गांव स्थित सोमनाथ मंदिर, शिव मंदिर राजापुर, बड़ी भवानी मंदिर रसिन और सरहट के शैल चित्रों के संरक्षण को हरी झंडी दी है। सभी जगह बोर्ड लगने के बाद बदहाली बरकरार है। इन इमारतों को संरक्षण की दरकार
राम शैय्या चित्रकूट, बांके सिद्ध संकर्षण गिरि, कोटतीर्थ, देवांगना घाट कर्वी, दशरथ घाटी मऊ, समोगर माता मंदिर बेराउर राजापुर, देवी मंदिर इटहा देवीपुर, भैरमपुर मंदिर मऊ, गोल तालाब कसहाई, कल्याणपुर जगन्नाथ मंदिर, कालूपुर शिव मंदिर, कर्वी का किला (गढ़ी), तरौंहा किला, पेशवा महल कर्वी समेत अन्य जगहों को संरक्षण तक नहीं मिला है। इन पर ध्यान दिया जाए तो पर्यटन को बढ़ावा मिल सकता है। इनका कहना है
धरोहरों के संरक्षण के बाद सुरक्षा के लिए अलग इंतजाम व बजट नहीं है। विभागीय कर्मचारी प्रत्येक सप्ताह वहां पहुंचकर हालात पर नजर रखते हैं। समय-समय पर प्रशासन को इसकी जानकारी दी जाती है।
- एसके कौशिक, अवर अभियंता, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण चित्रकूट कुछ दिन पहले विभाग ने एक दर्जन से अधिक धरोहरों की सूची बनाकर शासन को भेजी थी। इसमें चार को संरक्षित करने का अनुमोदन मिल चुका है। अन्य के लिए भी प्रयास किया जा रहा है।
- डॉ. आरएस पाल, क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी, प्रयागराज