मोदी के ख्वाबों में रंग भरेंगे चित्रकूट के खिलौने
हेमराज कश्यप चित्रकूट क बाजार में प्रधानमंत्री
हेमराज कश्यप, चित्रकूट
खिलौनों के सात लाख करोड़ रुपये के वैश्विक बाजार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत की बड़ी भागीदारी चाहते हैं। उनके सपने में चित्रकूट रंग भर सकता है। यहां लकड़ी के खूबसूरत खिलौने विदेशी मेहमानों को भी भाते हैं। बस यहां की काष्ठ कला को ज्यादा से ज्यादा प्रोत्साहन और निर्यात की जरूरत है।
चित्रकूट में भारी वन संपदा के चलते लकड़ी के उत्पादों के लिए कच्चा माल बहुतायत में है। यहां 600 परिवार दशकों से लकड़ी के खिलौने बनाते आए हैं। ये खिलौने अमेरिका व मलेशिया से लेकर ब्रिटेन तक प्रदर्शनी में वाहवाही बटोर चुके हैं। कलात्मक खूबसूरती के कारण खिलौने ड्राइंगरूम की शोभा भी बनते हैं। हालांकि स्थानीय शिल्पकारों को कोई खास लाभ नहीं मिल रहा था। ऊपर से चीन के सस्ते खिलौनों ने चित्रकूट के शिल्पकारों को भारी नुकसान पहुंचाया है। इसकी वजह से कारोबार सालाना एक करोड़ रुपये तक सिमट गया है। इधर, प्रदेश सरकार ने काष्ठ कला को एक जिला एक उत्पाद योजना में चुना तो कारीगरों में उत्साह जाग गया। वे कारोबार को ऊंचाइयों तक पहुंचाना चाहते हैं। जिला उद्योग केंद्र भी इसके लिए प्रयास कर रहा है। एक दर्जन से अधिक कारोबारियों ने ऋण लेकर इस कारोबार को आगे बढ़ाया है तो पूरे देश में प्रदर्शनी व मार्केटिग का काम विभाग कर रहा है। उपायुक्त उद्योग एसके केशरवानी ने बताया कि 50 से अधिक कारीगर प्रशिक्षण ले रहे हैं।
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इस तरह के खिलौने
- खूबसूरत रंग बिरंगे गुड्डे-गुड़िया, प्रतिमाएं, सजावटी सामान, गाड़ी-बाजा, टेबल लैंप, फ्लॉवर पॉट्स, हेलीकॉप्टर आदि।
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पीएम को भेंट की थी गणेश प्रतिमा
बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे का शिलान्यास करने आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी चित्रकूट में लकड़ी की गणेश प्रतिमा भेंट की गई थी। प्रयागराज कुंभ की प्रदर्शनी में लकड़ी के बने हेलीकॉप्टर व पानी के जहाज आकर्षण का केंद्र बने थे। ताज महोत्सव से लेकर दिल्ली व लखनऊ महोत्सव में भी चित्रकूट की शिल्पकारी अपनी छाप छोड़ चुकी है।
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निर्यात का मिले मौका तो बदल जाए सूरत
सीतापुर कस्बे के कारीगर अजय सिंह कहते हैं, निर्यात का मौका मिले तो चीन को पीछे छोड़ देंगे। धीरज सिंह कहते हैं, खिलौनों में सांस्कृतिक झलक हमारी परंपरा है। इसे अधिक से अधिक प्रोत्साहन की जरूरत है। शिल्पगुरु का राष्ट्रीय पुरस्कार पा चुके स्व. गोरेलाल राजपूत के पुत्र बलराम राजपूत कहते हैं कि यहां के खिलौने बेहद आकर्षक और सस्ते हैं। इन्हें निर्यात किया जाए तो कारीगरों का भी लाभ होगा और विदेशी मुद्रा भी आएगी। कारीगर जनार्दन कहते हैं कि यह कला विश्व बाजार में छाए, इसके लिए सरकार को ज्यादा जिम्मेदारी उठानी होगी।