बचपन पर दहशत, जवानी नशे में गुम
जागरण संवाददाता, चित्रकूट : आजादी के बाद से अब तक पाठा इलाके में बचपन पर दहशत का साया
जागरण संवाददाता, चित्रकूट :
आजादी के बाद से अब तक पाठा इलाके में बचपन पर दहशत का साया है तो जवानी नशे में गुम दिखाई पड़ती है। केंद्र से लेकर प्रदेश सरकारों ने यहां लोगों की दशा व दिशा बदलने की हर कोशिश की, लेकिन बहुत ज्यादा कामयाबी नहीं मिल पाई। तीन दशक तक पाठा में बादशाहत रखने वाले दस्यु ददुआ के बाद ठोकिया, बलखड़िया, रागिया व वर्तमान में बबुली कोल की दस्तक से बड़े, बुजुर्ग, बच्चे व महिलाएं खौफ में जीते हैं। हर आहट पर देहरी से झांकते चेहरों पर डर साफ दिखाई पड़ता है। बचपन से अक्सर पुलिसिया उत्पीड़न और डकैतों की आवाजाही देखने वाले अपराध की दुनिया में कदम रखने में ही अपनी भलाई समझने की भूल कर बैठते हैं। इसीलिए पाठा को डकैतों के अभिशाप से मुक्त करा सरकारों, जनप्रतिनिधियों और पुलिस के चुनौती बन चुका है।
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राहजनी, चोरी व लूट से होती शुरुआत
पाठा इलाके में पहाड़ों के ऊपर, उनके किनारे व आसपास जंगलों के बीच बसे दर्जनों गांवों के युवा अक्सर सुनसान सड़कों पर लोगों के साथ राहजनी, चोरी और लूट की घटनाओं को अंजाम देने लगते हैं। यही शुरुआत भविष्य में उनको किसी न किसी डकैत गिरोह से जुड़ने को मजबूर कर देती है।
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कोई उद्योग नहीं, बस बेरोजगारी
पेयजल, सड़क, बिजली, आवाजाही से लेकर तकरीबन सभी तरह की मूलभूत सुविधाओं से जूझते पाठा क्षेत्र के 250 गांवों में आजादी के बाद कई बार पेयजल योजनाओं पर काम हुआ, लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। हैंडपंप भी जलस्तर नीचे गिरने के कारण बीच में दगा दे जाते हैं। गांवों तक पहुंचने के लिए सड़कें बन गई, लेकिन गुणवत्ता ठीक न होने के कारण उनकी हालत भी खराब है। डकैतों व असुरक्षा की भावना के कारण इलाके में उद्योग नहीं पनप सके। इससे यहां के तकरीबन 90 फीसद युवा बेरोजगार हैं। कुछ मुंबई, दिल्ली, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश समेत अन्य जगहों पर मजदूरी कर गुजर-बसर कर रहे। बाकी हर तरह के नशे की गिरफ्त में दिखाई पड़ते हैं।
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जुआ अड्डे, अवैध शराब बिक्री व निर्माण
मानिकपुर के साथ मऊ तहसील के कुछ इलाके पाठा क्षेत्र में आते हैं। इन इलाकों में पहुंचने के बाद जगह-जगह जुआ अड्डे, अवैध शराब की बिक्री व निर्माण साफ दिखाई पड़ते हैं। जंगलों के बीच में इनको कोई पकड़ने भी नहीं पहुंचता है। अक्सर डकैतों की तलाश में कां¨बग के दौरान पुलिस इन पर जरूर कार्रवाई करती है, लेकिन ये फिर आबाद हो जाते हैं। अवैध कार्यो में जेल जाने वाले युवा कुछ दिन में डकैतों की तलाश में जुटी पुलिस के उत्पीड़न का शिकार बनने लगते हैं। इससे वह जंगल में कूदना मुनासिब समझते हैं।
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ये गांव ज्यादा खतरनाक
पाठा इलाके के नागर, शेखापुर, डोडामाफी, सोसाइटी कोलान, निही-चिरैया, चुरेह केशरुआ, किहुनिया, रानीपुर कल्याणगढ़, डांडी कोलान, बदगरी, गोबरिहाई, चमरौंहा, सकरौंया, गिदुरुहा, केकरामार, ऊंचाडीह, छोटी मड़ैंयन, बड़ी मड़ैंयन, बड़ी बेलहरी, छोटी बेलहरी, कैलहा, बहिलपुरवा, लखनपुर, ददरीमाफी आदि में दोपहर को सुनसान हालात देखकर घटनाओं को अंजाम देकर बदमाश निकल जाते हैं।
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इनका कहना है
डकैतों की शरणस्थली पाठा में धीरे-धीरे अपराध कम हो रहे हैं। दुर्गम इलाकों गश्त बढ़ाई गई है। थानेदारों की सक्रियता से बदलाव दिखने लगा है।
-मनोज कुमार झा, पुलिस अधीक्षक चित्रकूट