.. तो अपने पैरों पर खड़ी हो गई चंद्रकला
बिगड़े हुए हालात को बदलना सीखो, ऐ शमा के मा¨नद पिघलना सीखो, तूफां से ऐ दोस्त परेशां क्यों हो, तूफां को पांव से कुचलना सीखो। जी हां उक्त पंक्तियां चाय की दुकान से अपने जीवन की गाड़ी खींचने वाली शहाबगंज निवासी चंद्रकला पर अक्षरश: सिद्ध होती हैं।
जागरण संवाददाता चंदौली : बिगड़े हुए हालात को बदलना सीखो, ऐ शमा के मा¨नद पिघलना सीखो, तूफां से ऐ दोस्त परेशां क्यों हो, तूफां को पांव से कुचलना सीखो। जी हां उक्त पंक्तियां चाय की दुकान से अपने जीवन की गाड़ी खींचने वाली शहाबगंज निवासी चंद्रकला पर अक्षरश: सिद्ध होती हैं। पति ने छोड़ा तो अपने पैरों पर खड़ा हो पिता के बुढ़ापे की लाठी बन बिटिया के भविष्य को भी संवार रहीं। पिता रामलाल मोदनवाल ने चंद्रकला का विवाह 1997 में आजमगढ़ के फूलपुर बाजार निवासी रमेश के साथ किया। पारिवारिक कलह के कारण दो वर्ष बाद ही पति-पत्नी में विवाद हुआ तो संबंध टूट गए। बिटिया अंजली को लेकर मायके आ गई। यहां भी दुश्वारियों ने साथ नहीं छोड़ा तीन भाइयों में बंटवारा होने से चंद्रकला का जीवन और कठिन हो गया। छोटी बहन सीता के साथ वह माता-पिता की सेवा में जुट गई लेकिन परिवार का खर्च चलाना पहाड़ बन गया। लेकिन चंद्रकला ने हिम्मत नहीं हारी और घर से बाहर कदम रख ब्लाक मुख्यालय पर चाय की दुकान खोल ली। दुकान से जीवन की गाड़ी ने रफ्तार पकड़ी तो बिटिया के सपनों को भी पंख लग गए। बिटिया अंजली स्नातक की शिक्षा ग्रहण कर रही। गमों के घाव भरने को थे कि जून 2018 में मां अतवारी देवी ने साथ छोड़ दिया। चंद्रकला चाय की दुकान से खाली होने के बाद बुर्जुग पिता की सेवा व बिटिया के भविष्य संवराने में लगी रहती हैं। लोग चंद्रकला के हिम्मत की दाद तो देते ही हैं मधुर व्यवहार के कारण दुकान पर सुबह शाम चाय पिना नहीं भूलते। कहते हैं मन में जीने का जज्बा हो तो मुश्किलें खुद ब खुद पीछा छोड़ देती हैं।