जातिगत आधार पर साध रहे सियासी समीकरण
चुनावी वैतरणी पार करने में लगे राजनीतिक सूरमा मतदाताओं को पाले में करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं। चुनाव के आखिरी दौर में अब जातिगत समीकरण को साधने के प्रयास तेज हो गए हैं। जाति विशेष में अपनी मजबूत पैठ रखने वाले राजनीतिक दिग्गज प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार में उतर गए हैं। इससे सियासत दिलचस्प होती जा रही है।
जागरण संवाददाता, चंदौली : चुनावी वैतरणी पार करने में लगे राजनीतिक सूरमा मतदाताओं को पाले में करने की हर मुमकिन कोशिश कर रहे हैं।
चुनाव के आखिरी दौर में अब जातिगत समीकरण को साधने के प्रयास तेज हो गए हैं। जाति विशेष में अपनी मजबूत पैठ रखने वाले राजनीतिक दिग्गज प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार में उतर गए हैं। इससे सियासत दिलचस्प होती जा रही है।
जिले में कुल 13.92 लाख मतदाता हैं। इसमें अनुसूचित व पिछड़ा मतदाताओं की अच्छी खासी तादात है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो लोकसभा चुनाव में अनुसूचित व पिछड़ा मतदाताओं की भूमिका अहम होगी। जिस प्रत्याशी को इनका आशीर्वाद मिला, उसके सिर पर ही ताज बंधेगा। इस बार सपा-बसपा जातिगत समीकरण को साधने को एक साथ मिलकर चुनाव मैदान में है, तो भाजपा के पास सरकार के पांच साल के विकास कार्यों की थाती है। राजनीतिक दलों की नजर पिछड़ा व अनुसूचित मतदाताओं पर टिकी है। प्रमुख राजनीतिक दलों के स्टार प्रचारकों ने चुनाव प्रचार की कमान संभाल ली है। प्रत्याशियों के समर्थक भी दिन-रात एक किए हैं। वोटर को रिझाने को विकास के गीत सुनाई देने लगे हैं। जाति-धर्म की दुहाई भी दी जा रही। हालांकि चतुर मतदाताओं ने अभी तक अपना पत्ता नहीं खोला है। इसके चलते प्रत्याशियों की बेचैनी बढ़ती जा रही। 23 मई को परिणामों की घोषणा के बाद ही यह पता चलेगा कि मतदाताओं ने विकास को तरजीह दी, अथवा जातिगत समीकरण हावी रहा।
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