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माटीगांव की खोदाई में दिखने लगा मंदिर का ढांचा

जासं ताराजीवनपुर (चंदौली) काशी हिदू विश्वविद्यालय पुरातत्व विभाग की टीम की ओर से सोमवार को छठवें दिन भी क्षेत्र के माटीगांव में खोदाई का कार्य जारी रहा। इस दौरान जमीन के नीचे प्राचीन मंदिर का ढांचा अब स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। इसके पूर्व भगवान विष्णु की पत्थर की खंडित प्रतिमा और दुर्लभ शंख मिल चुकी है। खोदाई में मिलने वाले पुरातात्विक साक्ष्यों से यहां दो हजार साल पुरानी कुषाण व गुप्तकालीन सभ्यता के विकसित होने की पुष्टि हो रही है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 15 Jun 2020 07:25 PM (IST)Updated: Mon, 15 Jun 2020 07:25 PM (IST)
माटीगांव की खोदाई में दिखने लगा मंदिर का ढांचा
माटीगांव की खोदाई में दिखने लगा मंदिर का ढांचा

जासं, ताराजीवनपुर (चंदौली) : काशी हिदू विश्वविद्यालय पुरातत्व विभाग की टीम की ओर से सोमवार को छठवें दिन भी क्षेत्र के माटीगांव में खोदाई का कार्य जारी रहा। इस दौरान जमीन के नीचे प्राचीन मंदिर का ढांचा अब स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा है। इसके पूर्व भगवान विष्णु की पत्थर की खंडित प्रतिमा और दुर्लभ शंख मिल चुका है। खोदाई में मिलने वाले पुरातात्विक साक्ष्यों से यहां दो हजार साल पुरानी कुषाण व गुप्तकालीन सभ्यता के विकसित होने की पुष्टि हो रही है।

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बीएचयू की टीम छह दिनों से गांव में खोदाई करा रही है। दूसरे दिन खोदाई में विष्णु की प्रतिमा मिली थी। जबकि तीसरे दिन प्राचीन मंदिर का फर्श और दीवार की झलक दिखी। वहीं प्राचीन अरघा भी मिला था। अब मंदिर का ढांचा दिखाई देने लगा है। इससे पुरातत्वविदों का उत्साह बढ़ गया है। पुरातत्वविद मंदिर की वास्तु व प्रतिमा की नक्काशी के आधार पर अवशेषों को गुप्तकालीन मान रहे हैं। माना जा रहा है कि दो हजार साल पहले यह स्थल धार्मिक केंद्र रहा होगा। हालांकि अवशेषों की बारीकि से जांच-पड़ताल की जा रही है। इसके बाद ही स्पष्ट रूप के कुछ भी कहा जा सकता है। टीम में डा. विनय कुमार, प्रोफेसर एके दुबे, राहुल कुमार त्यागी, अभिषेक कुमार सिंह, परमदीप पटेल, वरूण कुमार सिन्हा, शिवशंकर प्रजापति शामिल हैं।

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ग्रामीणों में बढ़ी उत्सुकता

माटीगांव में पुरातत्व विभाग की टीम की खोदाई में रोजाना कोई न कोई ऐतिहासिक अवशेष मिल रहे हैं। इससे ग्रामीणों में जिज्ञासा बढ़ती जा रही है। ग्रामीणों को उम्मीद है कि खोदाई में मिले साक्ष्यों के आधार पर गांव की अलग पहचान बनेगी। वहीं ऐतिहासिक धरोहर के रूप में विकसित किया जाएगा। पर्यावरण के जरिए ग्रामीणों की किस्मत का भी ताला खुलेगा। इससे गांव की तस्वीर बदल जाएगी।


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