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शहरों की चकाचौंध से बेहतर है गांव की सोंधी माटी

शहरों महानगरों की चकाचौंध तामझाम से गांव की सोंधी मिट्टी बेहतर है। अपने गांव घर में मेहनत मजदूरी के दस बीस रुपये कम मिलें परिवार के बीच रहने का मौका मिले. यही बेहतर है। यह बोल क्षेत्र के शाहपुर गांव में अन्य प्रांतों से आए प्रवासी मजदूरों के है। मंगलवार को प्रवासी मजदूरों का जागरण टीम ने हाल जाना तो उन्होंने अपनी व्यथा कही।

By JagranEdited By: Published: Wed, 10 Jun 2020 04:53 PM (IST)Updated: Wed, 10 Jun 2020 04:53 PM (IST)
शहरों की चकाचौंध से बेहतर है गांव की सोंधी माटी
शहरों की चकाचौंध से बेहतर है गांव की सोंधी माटी

जासं, इलिया/चकिया (चंदौली) : शहरों, महानगरों की चकाचौंध, तामझाम से गांव की सोंधी मिट्टी बेहतर है। अपने गांव घर में मेहनत मजदूरी के दस बीस रुपये कम मिलें, परिवार के बीच रहने का मौका मिले. यही बेहतर है। यह बोल क्षेत्र के शाहपुर गांव में अन्य प्रांतों से आए प्रवासी मजदूरों के है। मंगलवार को प्रवासी मजदूरों का जागरण टीम ने हाल जाना तो उन्होंने अपनी व्यथा कही।

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विभिन्न शहरों, महानगरों व प्रांतों से अपने गांव को लौटे प्रवासी मजदूर घर आकर सुकून महसूस कर रहे हैं। गांव उन्हें भाने लगा है। शाहपुर गांव में दर्जनों की संख्या में आए प्रवासियों ने कहा लॉकडाउन के दौर दुखदाई रहा। माथा पकड़ जुबां खोली तो दर्द भरी दास्तां कहते कहते आंख से आंसू छलक पड़े। कुछ देर रुकने के बाद बताया कि कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि हमें इतनी परेशानियां, जलालत, दुश्वारियां झेलनी पड़ेगी। बताया पानी पी पीकर तीन दिन गुजारना पड़ा। काफी जद्दोजहद के बाद दिन में एक बार दो रोटी नसीब होती थी। मजदूरी के पैसे भी नहीं मिले। काफी परेशानी से गांव लौटे तो गांव की अहमियत समझ में आई। लेकिन अब चिता रोजगार की सता रही है। घर परिवार कैसे चलेगा। बीमारी, बच्चों की पढ़ाई और शादी-ब्याह का खर्च कहां से आएगा। बावजूद दिल में संतोष है। कि गांव-घर में ही मजदूरी कर सरकार की योजनाओं से जुड़ कर अपने परिवार का भरण-पोषण करेंगे, लेकिन अब बाहर नहीं जाएंगे। महाराष्ट्र से आए संतोष, सूरज, मनीष, गुजरात से विनोद, छोटेलाल, किशन कुमार, मुंबई से बृजेश ने बताया कि अपना जिला घर क्या होता है, अब समझ में आया है। इस बार जो परेशानी हुई है, उसे भूलना असंभव है। अब कभी भी बाहर नहीं जाएंगे। जैसे भी हो, अपने गांव में ही कुछ काम कर गुजर-बसर कर लेंगे। कहा जीवन में पहली बार भूखे पेट कई दिनों सोना पड़ा। इसे हम कभी नहीं भूल सकते। अब कभी भी पलायन नहीं करेंगे। प्रवासी मजदूरों ने कहा प्रदेश सरकार को अपने राज्य में ही काम मुहैया कराने की जरूरत है। ऐसा नहीं होता तो कृषि को ही रोजगार बनाकर जीविकोपार्जन किया जाएगा। गांव आने पर कोरोना महामारी का डर ऐसा था कि लोग अपने दरवाजे पर खड़े तक नहीं होने देते थे। एक तो घर आने की चिता में दर-दर भटक रहे थे। अब भूल कर भी दूसरे प्रदेश कभी नहीं जाएंगे। सरकार हमें गांव में ही रोजगार उपलब्ध कराए। छोटे-छोटे रोजगार के माध्यम से भी परिवार का पेट पाल लेंगे।


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